चिंताजनक: 30-40 साल के युवाओं में अपेंडिक्स कैंसर के मामले चार गुना बढ़े, खान-पान में बदलाव से बढ़ा खतरा
मिलेनियल्स युवा पीढ़ी दुर्लभ अपेंडिक्स कैंसर की चपेट में तेजी से आ रही है। 2000 के दशक की शुरुआत से अब तक इस कैंसर के मामलों में चार गुना वृदि्ध दर्ज की है। विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रवृत्ति न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि आने वाले वर्षों में कैंसर शोध और रोकथाम की रणनीतियों के लिए गंभीर संकेत भी देती है। नेशनल ज्योग्राफिक की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार अपेंडिक्स कैंसर पाचन तंत्र के अपेंडिक्स अंग में विकसित होता है। अब तक इसके मामले प्रायः 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में सामने आते थे, लेकिन ताजा आंकड़े बताते हैं कि यह बीमारी अब मिलेनियल्स पीढ़ी (1981 से 1996 के बीच जन्मे) यानी 30 से 40 साल के युवाओं में भी तेजी से पकड़ बना रही है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो दशकों में इस कैंसर के मामलों में चार गुना वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव केवल जनसंख्या वृद्धि या बेहतर डायग्नोसिस का परिणाम नहीं है बल्कि किसी गहरे स्वास्थ्य-परिवर्तन का संकेत हो सकता है। इस बढ़ोतरी के पीछे संभावित कारणों में आधुनिक खान-पान में बदलाव, प्रसंस्कृत भोजन का अधिक सेवन, प्रदूषण और आंत के माइक्रोबायोम में असंतुलन शामिल हैं। ये भी पढ़ें:Seat ka Samikaran:कभी थी कांग्रेस का गढ़, पूर्व मुख्यमंत्री भी बगहा के विधायक रहे, ऐसा है इसका चुनावी इतिहास लक्षण पहचान में मुश्किल रिपोर्ट के अनुसार अपेंडिक्स कैंसर अक्सर शुरुआती चरण में बिना स्पष्ट लक्षण के बढ़ता है। कई बार इसका पता तब चलता है जब मरीज का अपेंडिक्स अपेंडिसाइटिस के कारण निकाला जाता है और सर्जरी के बाद बायोप्सी में कैंसर का पता चलता है। संभावित लक्षणों में पेट दर्द, सूजन, मितली और अचानक वजन कम होना शामिल हैं, लेकिन ये कई अन्य पाचन रोगों से मिलते-जुलते हैं, जिससे समय पर निदान चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इलाज : कैंसर के प्रकार और चरण पर निर्भर करता है इलाज। अक्सर सर्जरी, कीमोथेरेपी और हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी अपनाई जाती है। शोधकर्ता अब इस पर काम कर रहे हैं कि युवा पीढ़ी के लिए किस तरह की स्क्रीनिंग और निवारक उपाय लागू किए जा सकते हैं। भारत में इसकी पहचान पहले की तुलना में अधिक हो रही हाल के अस्पताल-आधारित आंकड़े बताते हैं कि भारत में इसकी पहचान पहले की तुलना में अधिक हो रही है। बड़े शहरों के गैस्ट्रो-ऑन्कोलॉजी विभागों में आने वाले कुछ केस स्टडीज से संकेत मिला है कि युवा वयस्कों में यह कैंसर अक्सर देर से पहचाना जाता है, क्योंकि शुरुआती लक्षण साधारण अपेंडिसाइटिस से मिलते-जुलते होते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि बढ़ते हेल्थ-स्क्रीनिंग ट्रेंड और लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के दौरान बायोप्सी से इन मामलों की रिपोर्टिंग में तेजी आई है। ये भी पढ़ें:PAK:भारतीय राजनयिकोंकी पानी व गैस आपूर्ति रोकी,भारत ने भी पड़ोसी को 'जैसे को तैसा' जवाब दिया; जानिए मामला विशेषज्ञों की चेतावनी : विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रवृत्ति को हल्के में लेना खतरनाक होगा। शुरुआती लक्षणों की अनदेखी न करें और किसी भी असामान्य पाचन समस्या पर तुरंत चिकित्सीय जांच करवाएं। अमेरिकी कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट की गैस्ट्रो ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. अमांडा चेन का कहना है कि अपेंडिक्स कैंसर की शुरुआती पहचान मुश्किल है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 13, 2025, 06:38 IST
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