MP High Court: 18 साल बाद पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी का आदेश निरस्त, हाईकोर्ट ने की यह टिप्पणी

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 18 साल पहले हुई एक पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति नंदिता दुबे ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता कठोर दंड का पात्र नहीं था। पिछले आचरण के आधार पर उसे गंभीर कदाचरण का दोषी बताते हुए कार्यवाही की गई है, जो कि चार्जशीट का हिस्सा नहीं था। याचिकाकर्ता पवन मिश्रा की तरफ से दायर यााचिका में कहा गया था कि वह कटनी पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आरक्षक के पद पर पदस्थ थे। उनके खिलाफ हरीश चंद्र रजक नामक व्यक्ति ने अप्रैल 2002 में मारपीट की शिकायत की थी। शिकायतकर्ता की मेडिकल रिपोर्ट में डॉक्टरों ने मामूली चोट बताई थी। शिकायत पर कार्यवाही करते हुए उनके खिलाफ विभागीय जांच प्रारंभ की गई थी। विभागीय जांच रिपोर्ट के आधार पर पुलिस अधीक्षक ने उन्हें नोटिस जारी किया था। उन्होंने नोटिस का जवाब नहीं दिया था। इसके बाद विभागीय जांच रिपोर्ट के आधार पर उसे फरवरी 2003 में गंभीर कदाचरण का दोषी पाते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। जिसके खिलाफ उन्होंने अपील तथा क्षमा अपील दायर की थी, जो खारिज कर दी गई थी। इसके बाद पवन मिश्रा ने साल 2005 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई थी। कारण बताओ नोटिस में सजा का उल्लेख नहीं किया गया एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में सजा का उल्लेख नहीं किया गया है। इसके अलावा चार्जशीट में याचिकाकर्ता की 17 साल की नौकरी में 28 छोटी सजा तथा दो बड़ी सजा से दंडित किए जाने का उल्लेख किया गया है, जो चार्जशीट का पार्ट नहीं था। निलंबन अवधि का 50 प्रतिशत वेतन देने का आदेश अदालत ने कहा कि जांच में शिकायतकर्ता (हरीश चंद्र रजक) और एक महिला के बयान दर्ज किए गए थे। महिला ने अपने बयान में कहा था कि शिकायतकर्ता और उसका विवाद चल रहा था। शिकायतकर्ता उसकी तरफ दौड़कर आ रहा था, जिसे याचिकाकर्ता ने देख लिया था और उसे रोककर सिर्फ एक थप्पड़ मारा था। जांच में महिला के बयान को महत्व नहीं दिया गया। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि उक्त याचिका 18 साल से लंबित है। निलंबन अवधि का 50 प्रतिशत वेतन (बैक-वेज) याचिकाकर्ता को प्रदान किया जाए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 14, 2023, 20:57 IST
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