मुद्दा : जाति न पूछो जन की, पूछो कौशल का ज्ञान; सियासत रहे दूर और हुनर को सम्मान
मजदूर दिवस की पूर्व संध्या पर जाति-जनगणना की घोषणा, तो हो गई पर आदमी की जाति पर जो राजनीतिक बहस चलती रहती है, अगर उससे पशु-पक्षी भी सहमत हो जाएं, तो उन्हें भी अपनी भागीदारी और हिस्सेदारी के आधार पर अपनी गणना और अधिकारों की मांग करनी चाहिए। आखिर वे भी तो इसी देश में रहते हैं। पर अब तक अनुभव में यही आया है कि वे अपने वनों में आपसी योगदान के बीच मिल-जुलकर जीवनयापन करते हैं। उनके बीच कोई छुआछूत और पिछड़ेपन का भाव नहीं है। वे अपनी कर्म कुशलता के अनुरूप सह अस्तित्व में जीते हैं। वनों की समृद्धि में उनका बड़ा योगदान है। जैसे मनुष्य योनि है, उसी तरह पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों, वृक्ष-लताओं की भी अपनी योनि है। सभी योनियों के कर्म के आधार पर जाति का निर्धारण मनुष्यों ने ही अपने सुभीते के लिए किया है। खेती करने वाले मनुष्य खेतिहर और माटी से घड़ा बनाने वाले कुम्हार कहलाते हैं। गहने गढ़ने वाले सुनार, रस्सी बुनने वाले सुतार, लोहे का काम करने वाले लोहार, रुई धुनकने वाले धुनकर चमड़ा पकाकर जूते बनाने वाले मोची कहलाते हैं। सदियों से सबका जीवन इन कर्म आधारित नामवाली जातियों के रचनाशील कामों से ही चलता आया है और समाज इनका एहसान मानता आया है। पर अब उनके हाथों की कला छीनकर उन्हें विपन्न बनाया जा रहा है। कुम्हार, सुतार, लोहार, बुनकर आदि सभी हुनरमंद लोगों के काम मशीनों को सौंपकर और उन्हें अभावग्रस्त बनाकर उनके जीवन को राज्य पाने की लालसा से केवल वोटरों की बस्तियों में बसा दिया है। वे मुफ्त के आश्वासनों व अन्न पर जीवन गुजार रहे हैं। अपना गांव छोड़कर शहरों में मजूरी कर रहे हैं। आधुनिक सभ्यता के कचरे से बनी झुग्गी बस्तियों में जीवन काट रहे हैं। जाति तो कर्म सौंदर्य से पहचानी गई। इसी कारण वह आदरणीय रही है। उसमें कहीं अस्पृश्यता का भाव नहीं है। प्रत्येक तीज-त्योहार में जातियों द्वारा गढ़े गए उपकरणों की आत्मीय भूमिका रही है। उनके बिना किसी राज्य का भी काम नहीं चला है। बीते जमानों में इन जातियों ने ही देश को अमीरी प्रदान की। पर इनके आधुनिक नेताओं ने बाजार से राजनीतिक सौदा करके जातियों के मूल्यवान कर्मों को उनसे छीनकर उन्हें पिछड़े वर्ग के बाड़ों में कैद कर िदया है। पहले जो अनीति देश में बाहर से आए फिरंगियों ने इन हुनरमंद जातियों के खिलाफ अपनाई, उसे ही हमारे नेताओं ने आजादी के बाद आगे बढ़ाया है। समता की राजनीति करने वाले लोग इन असहाय होती जा रही जातियों को सिर्फ अपने वोट बैंक को दिवालिया होने से बचाने के लिए गिनना चाहते हैं। इन राजनीतिक दलों के जातिगणना छल में हुनरमंद जातियों को उनके साधन लौटाने का कोई इरादा नहीं दिखता। हमारे नेताओं को यह समझ कब आएगी कि खाली हाथ बैठे लोग फितूरी होकर हिंसा को अपनाने लगते हैं। काम में लगे हाथों से ही मन में अहिंसा भाव जागता है। जो स्वयंभू सामाजिक संगठन यह कह रहे हैं कि जाति पंडितों ने बनाई, उन्हें तनिक सोचना चाहिए कि पंडिताई के कर्म में दीक्षित होने के कारण पंडितजन स्वयं एक जातिगत पहचान रखते हैं। पूजाकर्म में दक्ष लोग पुजारी कहलाते हैं। जाति तो कर्म आधारित समूहों का नामकरण है। अरे भाई, नेतागिरी करने से ही तो नेता कहलाते हो। यह अलग बात है कि जो नेता देशसेवा के कर्म का दावा करते हैं, उन्होंने अपनी जातिगत पहचान ही खो दी है। जातिगत गणना की मांग करने वाले भांति-भांति के राजनीतिक दलों के कंप्यूटर में सभी आरक्षित और पिछड़ी जातियों का हिसाब-किताब पहले से ही मौजूद है। जिसके आधार पर वे वोट बटोरकर अब तक राज्यसुख भोगते आए हैं। पर वे अभावग्रस्त जातियां, जिस हाल में पड़ी हुई हैं, उसी बेहाली में किसी तरह गुजर-बसर करती रही हैं और ये दल उन्हें वोटरों को अपनी-अपनी बस्तियों में कैद किए रहने के उपाय करते ही रहते हैं। ये उस आरक्षण व्यवस्था पर भी पुनर्विचार नहीं होने देते, जिस पर इन दलों ने अपने वोट बैंक का जाल फैला रखा है। जरूरत तो इस बात की है कि जनगणना का आधार शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी व पारंपरिक हुनरमंदगी हो। तभी अभावग्रस्त जातियां आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन से निकलकर कर्मकुशलता पर आधारित लोकतंत्र की समृद्धि का सुख भोग सकेंगी। जैसे साधुओं की जात नहीं पूछी जाती, वैसे ही लोकतंत्र में जनता की जात नहीं पूछनी चाहिए। पूछना है, तो उसके कौशल का ज्ञान पूछो। दरअसल, यह पता लगाने की जरूरत है कि देश के जो पिछड़े जन परंपरागत उत्तराधिकार से जिस कारीगरी और हुनर को आज भी जानते हैं, उसकी गणना करके उसे नूतन स्वरूप देकर देश की समद्धि में किस तरह सहयोगी बनाया जा सकता है। अगर वे अदक्ष हैं, तो उन्हें कैसे कार्यकुशल बनाकर उनके अभाव दूर किए जा सकते हैं। गिनती गरीबों की होनी चाहिए, चाहे वे किसी भी जाति के हों। राज्य का उद्देश्य सभी पिछड़ गए लोगों की गरीबी दूर करना है। यह काम जाति पूछ लेने से नहीं होगा। वह तो हुनर की वापसी से होगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: May 02, 2025, 06:59 IST
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