Almora News: नब्ज जमती रही, सांस थमती रही, फिर भी बढ़ते कदम कोड्ड ना रुकने दिया

रानीखेत (नवीन भट्ट)। भारतीय सेना के शौर्य के अनेक किस्से और वीर गाथाएं हैं। शौर्य, पराक्रम से लबरेज सैनिक सीमाओं की रक्षा के लिए हर पल तैनात रहते हैं। 15 जनवरी का दिन सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल भारत का 75वां सेना दिवस मनाया जा रहा है। रानीखेत में कुुमाऊं रेजीमेंट का केंद्र है। पहले परमवीर चक्र प्राप्त मेजर सोमनाथ शर्मा, मेजर शैतान सिंह सहित कई अन्य वीरों का केआरसी से नाता रहा है। नवंबर 1962 में चीन युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर शैतान सिंह ने 17 हजार फीट ऊंचे चुसूल सैक्टर के रेजांग्ला में भारी बर्फबारी के बीच दुश्मनों का बहादुरी के साथ मुकाबला किया। शैतान सिंह का शरीर गोलियों से छलनी होता रहा। किंतु आखिरी सांस तक उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा और वीरगति को प्राप्त हो गए। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र प्रदान किया गया।एक दिसंबर 1924 को जोधपुर राजस्थान के बंसार गांव में ले. कर्नल हेम सिंह के घर में पैदा हुए मेजर शैतान सिंह ने एक अगस्त 1949 को कमीशन प्राप्त किया और कुमाऊं रेजीमेंट में नियुक्ति प्राप्त की। 1962 में चीन ने उत्तरी सीमाओं पर तीव्र आक्रमण कर दिया। मेजर शैतान सिंह इन्फैंट्री बटालियन की एक कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे और 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रेजांग्ला में तैनात थे। 18 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने भारी मोर्टार तोपों और छोटे हथियारों से इस कंपनी पर अप्रत्याशित ढंग से गोलाबारी शुरू कर दी। कुमाऊं रेजीमेंट की कंपनी में 120 लोग तैनात थे, जबकि दुश्मनों की संख्या काफी अधिक थी। इसके बावजूद भारतीय सेना ने कई दुश्मनों को मार गिराया। जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर निर्भीक होकर दौड़ते रहे और स्वयं गोलाबारी करते हुए साथियों को हौसला देते रहे। इसी बीच उनके कंधे और पेट में गोलियां लग गईं। लगातार खून बहता रहा। वह अंतिम समय तक लड़ते रहे। शरीर ढीला पड़ जाने पर जवानों ने उन्हें मोर्चे से हटाने का प्रयास किया, किंतु भारी मशीनगनों की गोलाबारी के बीच फंसे मेजर शैतान सिंह ने सैनिकों को वहां से हटकर अपनी जान बचाने का आदेश दिया। विपरीत परिस्थितियों में अप्रतिम बहादुरी का परिचय देने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र दिया गया। इस युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट के 116 जवान शहीद हुए थे। राइफलों के साथ मोर्चा लिए हुए थे शहीद जवानरानीखेत। कुमाऊं रेजीमेंट पर आधारित हरी कलगी की वीरगाथा नामक पुस्तक के अनुसार 18 नवंबर को रेजांग्ला में शहीद हुए जवानों के पार्थिव शरीर बर्फ के कारण ढकते चले गए। बाद में बर्फ पिघलने पर जब उन्हें खोजने के लिए टीमें पहुंची, तो दृश्य काफी मर्म स्पर्शी था। सभी जवानों के शरीर राइफलों के साथ इस तरह मौजूद थे मानो मोर्चा बांधकर दुश्मन के साथ लड़ रहे हों। संवाद रानीखेत का सोमनाथ मैदान। संवाद- फोटो : RANIKHET

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 14, 2023, 23:40 IST
पूरी ख़बर पढ़ें »

Read More:
Army Ranikhet



Almora News: नब्ज जमती रही, सांस थमती रही, फिर भी बढ़ते कदम कोड्ड ना रुकने दिया #Army #Ranikhet #SubahSamachar