केरल हाईकोर्ट का फैसला: फिजियोथेरेपिस्ट और व्यावसायिक थेरेपिस्ट अब नाम के आगे 'डॉ.' नहीं लगा सकेंगे; जानिए वजह

केरल हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश जारी करते हुए कहा है कि फिजियोथेरेपिस्ट और व्यावसायिक थेरेपिस्ट अपने नाम के आगे डॉ. शब्द का प्रयोग नहीं कर सकते, यदि उनके पास मान्यता प्राप्त चिकित्सा डिग्री नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह कदम आम जनता को भ्रमित होने से रोकने के लिए उठाया गया है। यह आदेश जस्टिस वी.जी. अरुण की एकल पीठ ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (IAPMR) की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिका में क्या कहा गया था आईएपीएमआर की याचिका में कहा गया था कि फिजियोथेरेपिस्ट और व्यावसायिक चिकित्सक खुद को प्रथम पंक्ति स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बताकर डॉक्टर के रूप में पेश कर रहे हैं, जो कानूनी रूप से गलत और जनता के लिए भ्रमित करने वाला है। संगठन ने यह भी मांग की थी कि इन पेशेवरों को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सहायक भूमिका तक ही सीमित रखा जाए। कोर्ट ने किन संस्थाओं को भेजा नोटिस हाईकोर्ट ने इस मामले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग (एनसीएएचपी), राज्य संबद्ध स्वास्थ्य सेवा परिषद और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को नोटिस जारी किया है। अदालत ने सभी पक्षों से याचिका पर जवाब मांगा है। मंत्रालय ने पहले ही जारी की थी अधिसूचना गौरतलब है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 9 सितंबर, 2025 को एक अधिसूचना जारी कर फिजियोथेरेपी-अनुमोदित पाठ्यक्रम 2025 में डॉ. शब्द को हटाने का आदेश दिया था। मंत्रालय ने कहा था कि मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता के बिना किसी व्यक्ति द्वारा डॉक्टर शीर्षक का उपयोग करना भारतीय चिकित्सा डिग्री अधिनियम, 1916 का उल्लंघन है। अदालत का रुख हाईकोर्ट ने मंत्रालय के इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि “डॉ.” शब्द का दुरुपयोग लोगों को यह गलत धारणा दे सकता है कि संबंधित व्यक्ति चिकित्सा डॉक्टर है, जबकि यह सच्चाई नहीं है। अदालत ने कहा कि फिलहाल यह एक अंतरिम आदेश है और इस पर अंतिम निर्णय आगे की सुनवाई के बाद लिया जाएगा।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 07, 2025, 04:47 IST
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