High Court: बर्खास्त कर्मचारी को 40 साल साल बाद इंसाफ, सरकार देगी मुआवजा, कोर्ट ने कहा- कर्मी की गलती नहीं

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने 40 साल पहले आनंदपुर साहिब हाइडल प्रोजेक्ट (एएसएचपी) से हटाए गए मजदूर को 5 लाख रुपये एकमुश्त मुआवजा देने का आदेश दिया है। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने 40 साल के लंबे समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई और सरकारी उदासीनता पर कड़ा संदेश देते हुए याची को इंसाफ दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य को एक आदर्श नियोक्ता की तरह व्यवहार करना चाहिए और कर्मचारियों को वर्षों तक अदालतों के चक्कर नहीं कटवाने चाहिए। जब राज्य के ही तंत्र लंबे समय तक मुकदमेबाजी के स्रोत बन जाएं, तो कल्याणकारी राज्य की अवधारणा कमजोर पड़ती है। याचिकाकर्ता मोहन लाल को 10 सितंबर 1978 को अर्थ वर्क मिस्त्री के तौर पर प्रोजेक्ट में नियुक्त किया गया था। प्रोजेक्ट पूरा होने पर 31 जुलाई 1985 को उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं और उन्हें औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत मुआवजा दिया गया। मोहन लाल सहित कई मजदूरों ने हटाए जाने को चुनौती दी थी। 1986 में हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया पर राज्य सरकार ने अपील की। इसके बाद 12 जनवरी 1989 को डिवीजन बेंच ने बहाली का आदेश तो नहीं दिया लेकिन सभी कर्मचारियों के समायोजन के निर्देश जारी किए। याचिकाकर्ता के वकील आरके गौतम ने दलील दी कि 1995 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पंजाब के महाधिवक्ता ने इन कर्मचारियों को नियुक्ति/तबादला आदेश जारी करने का वादा किया था। इसके बावजूद मोहन लाल को इस लाभ से वंचित रखा गया जबकि अन्य को इसका फायदा दिया गया। सरकारी वकीलों ने कहा कि मोहन लाल 1993 नीति के समय सेवा में नहीं थे और उन्होंने काफी देरी से याचिका दायर की। न्यायालय ने यह कहते हुए देरी की आपत्ति खारिज कर दी कि यह मुकदमा स्वयं सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई स्वतंत्रता के आधार पर दाखिल किया गया था। न्यायालय ने माना कि इतनी लंबी अवधि के बाद बहाली और बकाया वेतन संभव नहीं। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि कर्मचारी की कोई गलती नहीं थी, इसलिए उसे न्याय मिलना जरूरी है। अंततः अदालत ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर मोहन लाल को 5 लाख रुपये मुआवजे के रूप में दिए जाएं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 04, 2025, 02:04 IST
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