थाली में छूटे अन्न पर क्यों नहीं दुखता मन, खाना बर्बाद करना तो सही नहीं

इन दिनों विवाह-शादी समारोह का सीजन जोरों पर है। इसके साथ ही जोरों पर है अन्न की बर्बादी और फिजूल खर्चीली व्यावस्थाओं का बढ़ता चलन। हर साल तमाम आंकड़े, सूचकांक जारी होते हैं, जिसमें भुखमरी में देश का स्थान और खाद्यान्न उपलब्धता आदि के स्तर की बात होती है, लेकिन आंकड़े और रैंकिंग महज प्रतियोगी परीक्षार्थी के लिए एक प्रश्न होती हैं, एक आम आदमी के लिए अखबार की एक हेडलाइन और सरकार के लिए महज फर्जी तथ्यों पर आधारित सर्वेक्षण। लेकिन क्या एक जिम्मेदार नागरिक, एक संवेदनशील इंसान होने के नाते हमने कभी विवाह-समारोह में भोजन की बर्बादी पर चिंतन किया है जवाब होगा- नहीं, क्योंकि हम स्वाद और खाने की लालसा से आगे सोच ही नहीं पाते हैं। एक बार चखकर फेंकने की लत ने भोजन की बर्बादी को कितना बढ़ाया है न हमने इस बात पर कभी चिंता जाहिर की और न कभी सोचा आज कमोबेश हमारे आस-पास हर जगह यही हालात हैं। हमारे यहां तो अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है। थाली में जूठन छोड़ना अन्न देवता का अपमान समझा जाता है, लेकिन विडंबना है कि आज की बदलती जीवनशैली में इंसान को अन्न देवता का अपमान करना महज स्वाभाविक लगता है। आज हमें जरूरत है जागरूकता फैलाने की, शादी-विवाह में जागरूकता संबंधी बैनर या एक-दो मिनट की शॉर्ट फिल्म चलाकर लोगों को तत्काल सोचने के लिए मजबूर किया जाए। छोटे बच्चों को माता-पिता द्वारा घर में भोजन के समय व्यर्थ न बिगाड़ने या आवश्यकता से अधिक न लेने की आदत को डाला जाए, साथ ही आजकल की खर्चीली शादियों पर भी सरकार को ध्यान में रखकर कुछ प्रयास करने चाहिए और कुछ योजनाएं लाकर इन पर सीमितता लगनी चाहिए तभी अन्न का दुरुपयोग रुकेगा।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 29, 2023, 04:47 IST
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