अंतरराष्ट्रीय मुद्दे: बदल रहे क्षेत्रीय समीकरण, चीन का आगे बढ़ना और सीमा विवाद सुलझाने पर गंभीर होना शुभ संकेत
चीन के विदेश मंत्री वांग यी की हाल की दिल्ली यात्रा भविष्य की संभावनाओं का एक संकेत है। पिछले वर्ष के अंत में, वाशिंगटन में राजनीतिक बदलाव से ऐन पहले स्थितियां बदलनी शुरू हो गई थीं। हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रम इस प्रक्रिया को और आगे ले जाते दिखते हैं। बीते अक्तूबर में कजान में प्रधानमंत्री मोदी व राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच बनी सहमति ने जून 2020 में हुए तनाव के बाद संबंधों को फिर से बहाल करने की प्रक्रिया को गति दी है। कैलाश मानसरोवर यात्रा दोबारा शुरू होने और चीन के नागरिकों को पर्यटक वीजा देने के फैसले से आपसी समझ बेहतर हुई है। सीधी उड़ानें शुरू करने और पर्यटकों, व्यवसायों, मीडिया एवं अन्य आगंतुकों को वीजा की सुविधा प्रदान करने पर सहमति एक सकारात्मक संकेत है। साझा नदियों के संबंध में, चीन आपातकालीन स्थितियों के दौरान जल विज्ञान संबंधी जानकारियां साझा करने पर भी सहमत हुआ है। व्यापार और निवेश के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के प्रति एक नई प्रतिबद्धता है, जो भारत को इन कठिन समय में निर्यात को वैकल्पिक बाजार की ओर मोड़ने में मदद कर सकती है। लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला दर्रा और नाथू ला दर्रे के रास्ते होने वाले सीमा व्यापार को फिर से खोलना एक ऐसा कदम है, जिससे दोनों तरफ के सीमावर्ती निवासियों को लाभ होगा। चीनी पक्ष ने तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति का स्वागत किया है। एससीओ की सफलता ब्रिक्स जैसे मंचों पर बहुपक्षीय सहयोग को और आगे बढ़ाने में सहायक साबित होगी। ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत अगले वर्ष और चीन 2027 में करेगा। भले ही द्विपक्षीय संबंधों में सुधार आ रहा है, फिर भी दोनों पक्षों को इस बात का एहसास है कि सीमा विवाद एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। उल्लेखनीय रूप से, दोनों पक्ष भारत-चीन सीमा मामलों से संबंधित मौजूदा परामर्श एवं समन्वय हेतु कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) के तहत एक विशेषज्ञ समूह गठित करने पर सहमत हुए हैं, ताकि भारत और चीन के बीच के सीमावर्ती इलाकों में सीमा निर्धारण के मामले में शीघ्र हल तलाशे जा सकें। एक अन्य महत्वपूर्ण समझौता पश्चिमी क्षेत्र में व्यवस्थित कोर कमांडर-स्तरीय बैठकों की तर्ज पर पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में जनरल स्तर के तंत्र की स्थापना से संबंधित है। लिहाजा, मौजूदा मॉडल के आधार पर, मध्य क्षेत्र (हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड से सटे) और पूर्वी क्षेत्र (सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश से सटे) के संबंध में उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता के लिए एक अलग तंत्र की स्थापना अपेक्षाकृत आसान हो सकती है। डब्ल्यूएमसीसी के तहत एक विशेषज्ञ समूह का गठन दोनों पक्षों द्वारा सीमा निर्धारण के मामले में प्रगति हासिल करने को दिए गए महत्व को रेखांकित करता है। अंतरराष्ट्रीय परिभाषा के अनुसार, सीमा निर्धारण एक ऐसी औपचारिक प्रक्रिया है, जिसमें सीमा को एक बड़े पैमाने के स्थलाकृतिक मानचित्र पर रेखांकन किया जाता है और लिखित विवरणों द्वारा समर्थित किया जाता है, जिसके बाद मानचित्र पर रेखांकन और मिलान विवरण अंततः जमीनी स्तर पर सीमांकन की दिशा में एक अभिन्न कदम बन जाते हैं। संबंध सुधारने के लिए चीन की आगे बढ़ने की इच्छा एक शुभ संकेत है। एक कार्य समूह के जरिये कारगर सीमा प्रबंधन को आगे बढ़ाना भी एक स्वागत योग्य कदम है। कुछ विश्वास बहाली के उपायों (सीबीएम) में सुधार की आवश्यकता हो सकती है। फिर भी अन्य उपायों को पूरी तरह से लागू करने की जरूरत हो सकती है। एजेंडे में संचार संपर्कों में सुधार एवं वृद्धि, अग्रिम चौकियों के बीच हॉटलाइन की संख्या बढ़ाना, सीमा कर्मियों की बैठकों (बीपीएम) के लिए अतिरिक्त बैठक बिंदु निर्धारित करना और गश्ती दल के बीच टकराव की स्थिति में आचरण को नियंत्रित करने हेतु दिशानिर्देशों को संशोधित करना शामिल हो सकता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में पारदर्शिता और विवादित क्षेत्रों में यथास्थिति को बदलने के लिए एकतरफा कार्रवाई से बचने की दृढ़ प्रतिबद्धता भी इच्छा सूची में शामिल होनी चाहिए। भड़काऊ स्थिति से बचने के लिए गश्त से जुड़ी गतिविधियों को विनियमित करना एक प्रमुख प्राथमिकता होगी। पूर्व सूचना के साथ गश्त करना, समवर्ती गश्त से बचना या कुछ हिस्सों में संयुक्त गश्त करना कुछ ऐसे विकल्प हैं जिन पर विचार किया जा सकता है। तनाव कम करने के लिए, हाल के वर्षों में अग्रिम मोर्चों पर पहले से निर्मित बुनियादी ढांचे को नष्ट करना पड़ सकता है। लेकिन, यह एक कठिन काम साबित हो सकता है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की आगामी चीन यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूती मिलने की उम्मीद है। वर्ष 2020 में राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ पर कुछ अड़चनें आई थीं, लेकिन इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर स्थितियां बदल रही हैं। (लेखक पूर्व राजदूत हैं और वर्तमान में मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के महानिदेशक हैं।)
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 27, 2025, 07:16 IST
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