विमानन बाजार के लिए चेतावनी: उपभोक्ता अधिकारों पर प्रहार, स्टाफ संरचना और बाजार प्रभुत्व के स्तरों पर संकट
देश के घरेलू आसमान में इंडिगो की विशाल उपस्थिति ने जहां भारतीय विमानन को गति दी थी, वहीं मौजूदा व्यवधान ने यह भी स्पष्ट किया है कि अत्यधिक केंद्रीकरण किसी भी उद्योग के लिए कितना जोखिमपूर्ण साबित हो सकता है। पिछले कुछ दिनों की उथल-पुथल ने सामान्य यात्रियों, निवेशकों, नियामकों और प्रतिस्पर्धी कंपनियों को समान रूप से प्रभावित किया है। यह स्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सिर्फ एक एयरलाइन का परिचालन संकट नहीं बल्कि भारतीय विमानन प्रणाली की संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर करने वाला परिदृश्य बन गया है। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय घरेलू उड़ानों में इंडिगो का प्रभुत्व वर्षों से बढ़ता रहा है। मगर यही ताकत अब बाजार की कमजोरी बनकर सामने आई। जब अमेरिकी या यूरोपीय बाजार में कोई बड़ी एयरलाइन अवरोध का सामना करती है, वहां प्रतिस्पर्धी कंपनियां तुरंत दबाव कम कर पाती हैं। लेकिन भारतीय व्यवस्था में हाल ही में विलय, फ्लीट की कमी और नए विमानों की धीमी आपूर्ति ने संतुलन की क्षमता लगभग समाप्त कर दी है। क्या कहना है विश्लेषकों का इंडस्ट्री विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय बाजार में यात्रियों के लिए विकल्प का दायरा अत्यंत सीमित हो चुका है। इसलिए जैसे ही इंडिगो के नेटवर्क में लय टूटी, पूरे सेक्टर में एयरफेयर अप्रत्याशित रूप से बढ़ गए। कई रूट्स पर प्रतिस्पर्धी एयरलाइंस ने अवसर देखते हुए डायनेमिक प्राइसिंग इतनी तेजी से बढ़ाई कि सामान्य दिनों में उपलब्ध 5 से 7 हजार की टिकटें लगभग 8 से 10 गुना बढ़ गईं। यह संकेत है कि भारत में घरेलू विमानन विकेंद्रीकृत प्रतिस्पर्धा के अभाव का सामना कर रहा हैै। रिपोर्ट के अनुसार संकट के दौरान सबसे अधिक नुकसान यात्रियों को हुआ, परंतु उनका संरक्षण लगभग नगण्य रहा। यही कारण है कि हालिया अव्यवस्था ने तीन बड़े सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या भारत को यूरोपीय देशों की तरह मजबूत पैसेंजर कंपेनसेशन कोड अपनाना चाहिए। दूसरा,क्या एयरलाइंस को फ्लाइट रद्द होने के समय स्पष्ट कारण बताना अनिवार्य होना चाहिए और क्या यात्रियों को वास्तविक समय में रोस्टरिंग व स्टाफिंग स्थिति की जानकारी देने का कोई पारदर्शी तंत्र बनना चाहिए। उपभोक्ता समूहों का आरोप उपभोक्ता समूहों का आरोप है कि कंपनियां रद्दीकरण का बोझ हमेशा यात्रियों पर डालती हैं, जबकि परिचालन जोखिम उनकी अपनी जिम्मेदारी है। आईएटीए की रिपोर्ट कहती है कि स्टाफ संरचना, प्रशिक्षण क्षमता और नियामक संकेत लंबी अवधि की समस्या का शुरुआती संकेत है। गहराई में जाएं तो यह संकट अचानक नहीं आया। यह स्टाफिंग मॉडल से उपजा संकट है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 06, 2025, 08:24 IST
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