मुद्दा: भारत हर कीमत चुकाने को तैयार, किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता पर
भारत में हरित क्रांति के नायक डॉ. एमएस स्वामीनाथन शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री मोदी के इस संबोधन से किसानों एवं पर्यावरणविदों को राहत मिली है कि हमारे लिए किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता पर है। भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी समझौता नहीं करेगा, हालांकि इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत तौर पर बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। भारतीय उत्पादों के आयात पर 25 फीसदी अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाने का ट्रंप का आदेश जारी होने के बाद उनका यह बयान महत्वपूर्ण है। इस तरह पहले लगाए गए 25 फीसदी टैरिफ को मिलाकर भारतीय उत्पादों पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क रूस से कच्चा तेल खरीदने के खिलाफ दंडस्वरूप लगाया गया है। असल में अमेरिका भारत में अपने कृषि उत्पादों के लिए बाजार चाहता है, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह डेयरी क्षेत्र और जीएम सोयाबीन व मक्का के लिए अपना बाजार नहीं खोलेगा। भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाएं भी अहम भूमिका निभाती हैं। अमेरिका द्वारा मवेशियों को पशु उप-उत्पाद खिलाने की प्रथा को लेकर भी चिंताएं हैं, जो स्थानीय मानदंडों और सुरक्षा संबंधी धारणाओं का उल्लंघन करती हैं। प्रधानमंत्री के कड़े रुख अपनाने के कारण कृषि एवं देश के स्वाभिमान से जुड़े प्रश्नों को दरकिनार कर किसी समझौते की संभावना मुश्किल है। कृषि व्यापार में, भारत का अमेरिका को निर्यात 2024-25 में 6.25 अरब डॉलर रहा, जो 2023-24 में 5.52 अरब डॉलर था। वित्त वर्ष 2025 में, अमेरिका को भारत का कुल निर्यात 86.51 अरब डॉलर था, जबकि अमेरिका से आयात कुल 45.69 अरब डॉलर था। आज भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहां वह द्विपक्षीय व्यापार समझौते करने की कोशिश कर रहा है, जिससे उसे ट्रंप की प्रस्तावित 26 फीसदी टैरिफ से मुक्ति मिल सके। लेकिन जीएम सोयाबीन एवं मक्का के निर्यात को शामिल करने के अमेरिका के आग्रह ने व्यापार वार्ता पर लंबी छाया डाल दी है। भारत में मक्का से एथेनॉल कम मात्रा में बनता है और उसका मानव आहार के रूप में अधिकतम उपयोग किया जाता है। जब पंजाब के लोग नशा विरोधी आंदोलन कर रहे हैं, तब जीएम के जरिये पंजाब की मिट्टी, पानी और हवा को और जहरीला बनाने की कोशिश बेहद निंदनीय है। फिक्की द्वारा आयोजित मक्का सम्मेलन में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फसलों के विविधीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि सरकार मक्का की खेती का विस्तार करना चाहती है, जिसका लक्ष्य 2047 तक उत्पादन को 8.6 करोड़ टन तक पहुंचाना है, जो अभी 4.24 करोड़ टन है। भारत खाद्य फसलों में आनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों के खिलाफ अपना रुख बनाए रखते हुए उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। आईसीएआर ने मक्का की 265 किस्में विकसित की हैं, जिनमें 77 संकर और 35 जैव फर्टिलाइजर किस्में शामिल हैं। पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति ने इसे मंजूरी देने से इन्कार कर दिया है। संसद की अन्य दो समिति की रिपोर्ट में भी जीएम फसलों के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर प्रभावों के आकलन बिना मंजूरी न देने की बात कही गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसे अप्राकृतिक बता चुका है। यों भी भारत में यह प्रयोग विनाशकारी ही साबित हुआ है। देश में अभी तक जीएम फसलों के रूप में केवल बीटी कपास की ही व्यावसायिक खेती हो रही है। वर्ष 2010 में बीटी बैंगन को मंजूरी दिलाने की कवायद शुरू हुई थी, लेकिन व्यापक विरोध के कारण सरकार को अपना कदम वापस लेना पड़ा। संसद की कृषि मामलों की समिति ने अपनी 37वीं रिपोर्ट में बताया है कि बीटी कपास की व्यावसायिक खेती करने से कपास उत्पादक किसानों की माली हालत सुधरने के बजाय बिगड़ गई। स्वदेशी जागरण मंच और किसान संघ का तीव्र विरोध भी नीति निर्धारकों को झेलना पड़ा। बिहार सरकार के मुख्यमंत्री और राजग सरकार के प्रमुख सहयोगी नीतीश कुमार भी इसके विरोध में आ गए हैं। उन्होंने पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि जीएम बीज मामले में केंद्र सरकार को राज्यों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के बाद ही इसके व्यावसायिक उपयोग की मंजूरी देनी चाहिए और राज्यों से पूछे बिना इसका फील्ड ट्रायल न किया जाए। पारंपरिक किस्मों की तुलना में जीएम किस्म को लेकर जो बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए जा रहे हैं, उनमें भी मतभेद है। विश्व के अन्य भागों में भी जीएम फसलों के परीक्षण अच्छे साबित नहीं हुए। अमेरिका में एक प्रतिशत भू-भाग में जीएम मक्का की खेती की गई, जिसने 50 फीसदी गैर-जीएम खेती को संक्रमित कर दिया। चीन में भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ा, नतीजतन वहां जीएम खेती लगभग बंद हो गई है। भारत खाद्य-उत्पादन में न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि अनाज, सब्जी एवं फलों आदि का ऊंचे पैमाने पर निर्यात भी कर रहा है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 03, 2025, 03:17 IST
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