GTRI: सस्ते तेल खरीद का लाभ जल्द गंवा सकता है भारत, अंतरराष्ट्रीय संस्था बोली- समस्या का तत्काल हल संभव नहीं

अमेरिकी टैरिफ के कारण निर्यात के मोर्चे पर होने वाले नुकसान की भरपाई में भारत सस्ते रूसी तेल की खरीद से हुए लाभ को जल्द गंवा सकता है। चिंता की बात है कि इसका तत्काल कोई समाधान भी नजर नहीं आ रहा है। विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत ने 2022 की शुरुआत से रूस से तेल आयात बढ़ाकर कम से कम 17 अरब डॉलर की बचत की है। जीटीआरआई के अनुसार, ट्रंप टैरिफ के कारण चालू वित्त वर्ष में अकेले निर्यात में 40 फीसदी से अधिक या लगभग 37 अरब डॉलर की कमी आ सकती है। टैरिफ के दुष्परिणाम लंबे समय तक रह सकते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक रूप से कमजोर कर सकते हैं, क्योंकि कपड़ा, रत्न-आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में हजारों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले हफ्तों में भारत की प्रतिक्रिया रूस के साथ दशकों पुरानी साझेदारी को नया आकार दे सकती है। अमेरिका से संबंधों को संतुलित कर सकती है। रूस-अमेरिका में एक को चुनने की नहीं है सुविधा दिल्ली की सामरिक एवं रक्षा अनुसंधान परिषद के संस्थापक हैप्पीमॉन जैकब ने कहा, भारत को रूस से रक्षा उपकरणों के साथ सस्ता तेल, महाद्वीपीय क्षेत्र में भू-राजनीतिक समर्थन और संवेदनशील मामलों में राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है। यही कारण है कि रूस भारत के लिए एक अमूल्य साझेदार है। ये भी पढ़ें:India-Russia Ties:रूस को भारत का न्योता, राजदूत कुमार बोले- अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश करें रूसी कंपनियां जैकब ने कहा, भारत के पास रूस और अमेरिका में से किसी एक को चुनने की सुविधा नहीं है, कम से कम अभी तो नहीं। दरअसल, भारत वाशिंगटन के साथ संबंधों को सुधारना चाहता है और अमेरिकी ऊर्जा की खरीद बढ़ाने के लिए तैयार है। लेकिन, वह रूस से सस्ते कच्चा तेल आयात को पूरी तरह से रोकना भी चाहता है।  भारत की कुल तेल खरीद में रूस की 40 फीसदी हिस्सेदारी रूसी कच्चे तेल से भारत की कुल तेल खरीद में करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि यूक्रेन युद्ध से पहले यह लगभग शून्य थी। विश्लेषकों का कहना है कि तत्काल रोक न सिर्फ दबाव में सरेंडर का संकेत होगा, बल्कि आर्थिक रूप से भी अव्यावहारिक होगा। भारतीय खरीद का नेतृत्व अरबपति मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज कर रही है। भारत के खरीद बंद करने पर तीन गुना बढ़ सकती हैं कीमत अनुमानों के अनुसार, अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे तो वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 200 डॉलर प्रति बैरल हो सकती हैं। वैश्विक बेंचमार्क की तुलना में रूसी तेल पर मिलने वाली 7 फीसदी तक की छूट भी उसे गंवानी पड़ेगी। रूस ने कहा, उसे उम्मीद है कि भारत तेल खरीदता रहेगा। भारत का अमेरिका पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप इस महीने एक कड़ी प्रतिक्रिया में भारत ने अमेरिका पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया, क्योंकि वह रूसी तेल आयात के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा रहा है, जबकि खुद रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम और उर्वरक खरीद रहा है। भारत का कहना है कि चीन जैसे अन्य देशों को दंडित नहीं किया गया है, जबकि इन देशों ने रूसी तेल की खरीद बढ़ा दी है। ये भी पढ़ें:Report:2038 तक अमेरिका को पछाड़ भारत बन सकता है दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था! IMF के अनुमान के आधार पर EY का दावा रूस के साथ अब चीन से भी नजदीकी बढ़ा रहा भारत अमेरिका से टकराव के बीच भारत अब रूस के साथ-साथ चीन से भी नजदीकी बढ़ा रहा है। वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों ने हाल के दिनों में रूस की यात्रा की जबकि पीएम नरेंद्र मोदी सात वर्षों में पहली बार इस महीने चीन की यात्रा करने वाले हैं। 2020 में हिंसक सीमा संघर्ष के बाद पिछले साल से भारत-चीन संबंधों में नरमी आनी शुरू हुई थी। पीएम मोदी के रविवार से शुरू हो रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दोनों से मुलाकात करने की उम्मीद है। हालांकि सूत्रों ने कहा कि भारत अभी भी चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर बहुत सतर्क है और रूस की उम्मीद के विपरीत अभी तक तीनों नेताओं के बीच त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन पर विचार नहीं कर रहा है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 28, 2025, 06:25 IST
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