Jhansi News: बाइस साल तक मिला पैरवी का मौका, फिर भी नहीं दिला सके सजा
झांसी। विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) आदित्य चतुर्वेदी की कोर्ट ने आपराधिक अपील के मामले को खारिज कर दिया। इस अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि किसी वाद को 24 साल बाद फिर से विचारण के लिए खोल दिया जाएगा, तो इससे निश्चित रूप से कोर्ट पर अनावश्यक भार पड़ेगा। निचली अदालत ने रक्सा के परवई निवासी रंजीत को एक मामले में 20 जनवरी 2024 को साक्ष्य न मिलने के आधार पर बरी कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ विशेष न्यायाधीश कोर्ट में अपील दाखिल की गई। कहा गया कि अवर न्यायालय ने अभियुक्त रंजीत के खिलाफ 26 जून 2023 को आरोप तय किए। इस मामले में कोर्ट ने उचित तरीके से गवाहों को तलब करने के लिए आदेशिका नहीं की। केवल पत्रावली की आर्डर शीट में उल्लेखित रवाना पूर्ति की गई। आरोप तय होने के बाद निचली कोर्ट ने कम समय दिया। कोर्ट के पत्रावली देखने पर मालूम चला कि निचली अदालत में अभियोजन पक्ष को 22 साल में पैरवी के लिए मिला था। कोर्ट ने सवाल खड़े करते कहा कि क्या अभियोजन का यह विधिक दायित्व नहीं था कि वह अपने द्वारा अभियोजित किए जा रहे केस में न्यायालय से संबंधित आदेश प्राप्त करे और पैरवी करके उसका निराकरण करवाए। कोर्ट ने अपील को बलहीन पाते हुए ठुकरा दिया। विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) कोर्ट ने इस संबंध में 20 सितंबर को आदेश पारित करते हुए रंजीत को बरी करने संबंधी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 23, 2025, 02:46 IST
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