Gopaashtami 2025: कब है गोपाष्टमी, जानिए भगवान श्रीकृष्ण को कैसे मिला गोविन्द नाम
Gopaashtami 2025: प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला गोपाष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के गोपालन और गौ माता के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है। इस दिन श्रीकृष्ण को उनके बचपन में गौचारण (गायों को चराने) का कार्य सौंपा गया था, तब से इस पर्व का प्रारंभ हुआ। विशेष रूप से यह दिन गायों की रक्षा, उनकी सेवा के संकल्प का महापर्व है। भगवान श्रीकृष्ण को मिला गोविन्द नाम भगवान कृष्ण का अतिप्रिय 'गोविन्द' नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पड़ा था, क्योंकि श्री कृष्ण ने गायों और ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर रखा था। आठवें दिन इंद्र अपना अहम् त्यागकर भगवान की शरण में आए, उसके बाद इंद्र ने कामधेनू गाय के दूध से भगवान कृष्ण का अभिषेक किया और भगवान श्रीकृष्ण का 'गोविन्द' नाम से स्तवन किया। Dev Diwali 2025:देव दिवाली पर शिववास योग समेत बन रहे हैं शुभ संयोग, खुलेंगे शुभता के द्वार श्रीमद्भागवत पुराण में गोपाष्टमी का प्रसंग श्रीमद भागवत पुराण में प्रसंग है कि जब श्रीकृष्ण पांच वर्ष के हो गए और छठे वर्ष में प्रवेश किया तो एक दिन यशोदा माता से बाल कृष्ण ने कहा "मइया! अब मैं बड़ा हो गया हूं, अब मुझे गोपाल बनने की इच्छा है। मैं गायों की सेवा करने के लिए ही यहां आया हूँ।" अब तक श्रीकृष्ण वत्सपाल थे, छोटे-छोटे बछड़ों को ले जाते थे। यशोदा मइया ना बोलती हैं और कहती हैं “अभी तुम छोटे हो, शुभ मुहूर्त में मैं तुम्हें गोपाल बनाऊंगी।”उसी समय शाण्डिल्य ऋषि वहां आए और विचार करके उन्होंने कार्तिक मास शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गौचारण का मुहूर्त निकाला। Shubh Vivah Dates 2025:देवउठनी एकादशी के साथ फिर बजेंगी शहनाई, यहां जानें इस साल के शुभ विवाह मुहूर्त नंगे पांव गौचारण पर निकले नंदलाल सप्तमी की रात बालकृष्ण को नींद नहीं आई और अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर गायों की पूजा और प्रदिक्षणा की। वन जाने के लिए जैसे ही यशोदाजी पैरों में जूतियां पहनाने लगीं तो बालकृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे “मैया! यदि मेरी गायें जूती नहीं पहनतीं तो मैं कैसे पहन सकता हूँ”और वे नंगे पैर ही अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ गायों को चराने जाने लगे। श्री कृष्ण जब तक गोकुल में विराजते थे, तब तक गोकुल-वृन्दावन में खुले पांव गायों के पीछे चले हैं, इसलिए व्रज-रज अति पवित्र मानी गई है। पुण्य प्राप्ति के लिए गोपाष्टमी की पूजा विधि इस दिन प्रातः श्री कृष्ण नाम का स्मरण करते हुए गाय और बछड़े को स्नान कराएं एवं उनका शृंगार करें। पूजा स्थल पर दीपक जलाकर, गायों को हल्दी, रोली, और अक्षत का तिलक लगाकर उन पर पुष्प माला अर्पित करें। गौमाता को गुड़, रोटी, और हरी घास का भोग लगाकर परिक्रमा कर लें। इस दिन गाय की परिक्रमा करके गायों के साथ कुछ दूरी तक चलना भी चाहिए। मान्यता है कि उनकी चरण रज को माथे पर लगाने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। पूजा के अंत में भगवान श्रीकृष्ण और गौमाता की आरती करें और उनसे घर में सुख-शांति, समृद्धि व परिवार में खुशहाली की प्रार्थना करें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 28, 2025, 11:55 IST
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