गोवा में नरक चौदस पर क्यों जलाया जाता है नरकासुर का पुतला? जानें दिवाली पर कृष्ण पूजन का महत्व

Narak Chaturdashi 2025: भारत एक ऐसा देश है जहां हर राज्य और क्षेत्र अपनी अनूठी परंपराओं और मान्यताओं के साथ त्योहारों को मनाता है। दीपावली भी पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है, लेकिन इसकी मान्यता और रीति-रिवाज जगह-जगह पर अलग-अलग होते हैं। उत्तर भारत में दीपावली श्रीराम के अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाई जाती है और इस दिन घरों को दीपों से सजाया जाता है, लक्ष्मी पूजन किया जाता है और खुशियां बांटी जाती हैं। वहीं गोवा में दीपावली का सबसे बड़ा आकर्षण नरक चतुर्दशी होती है, जिसे “नरकासुर वध दिवस” के रूप में जाना जाता है। गोवा में इस दिन का महत्व दीपावली से भी अधिक माना जाता है। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माने जाने वाले नरकासुर का वध किया गया था। यहां लोग इस अवसर पर विशाल पुतले बनाकर नरकासुर का प्रतीकात्मक दहन करते हैं और उल्लास के साथ पर्व मनाते हैं। Narak Chaturdashi 2025:नरक चतुर्दशी पर करें ये पांच उपाय, जीवन के सभी संकट होते हैं दूर गोवा में दीपावली से भी बड़ा पर्व नरक चतुर्दशी भारत में हर राज्य अपनी परंपराओं के अनुसार दीपावली मनाता है। उत्तर भारत में यह पर्व भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है, जबकि गोवा में दीपावली का सबसे बड़ा आकर्षण नरक चतुर्दशी होती है। इसे “नरकासुर वध दिवस” के रूप में मनाया जाता है और यहां इस दिन का महत्व दीपावली से भी अधिक माना जाता है। गोवा में दिवाली के नायक हैं भगवान श्रीकृष्ण गोवा में दीपावली की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध कर देवताओं और मनुष्यों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसी वजह से लोग इस दिन बड़े-बड़े नरकासुर के पुतले बनाकर उनका दहन करते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं। Narak Chaturdashi 2025:नरक चतुर्दशी पर यम दीप जलाते समय न करें ये गलती, जानें इसकी विधि और शुभ समय नरकासुर वध की पौराणिक कथा पुराणों के अनुसार नरकासुर प्रागज्योतिषपुर का राजा था, जो अत्याचारी और अधर्मी था। उसने स्वर्ग पर अधिकार कर देवताओं को परास्त कर दिया था और सोलह हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। जब अत्याचार बढ़ा, तो इंद्र देव ने श्रीकृष्ण से सहायता मांगी। कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर के राज्य पहुंचे। सत्यभामा की मदद से उन्होंने नरकासुर का वध किया क्योंकि उसे स्त्री के हाथों मरने का श्राप था। इसके बाद सोलह हजार स्त्रियों को मुक्त कराया गया। नरकासुर का अंत और मुक्ति का प्रतीक नरकासुर के वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर राज्य सौंपा। उसी दिन से नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह दिन बुराई के अंत और स्वतंत्रता की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। गोवा में इसे दीपावली से एक दिन पहले बड़े उत्साह से मनाया जाता है। Narak Chaturdashi 2025:नरक चतुर्दशी कल, जब भगवान कृष्ण ने मिटाया भय और दिया स्वयं की देखभाल का संदेश गोवा में पुतला दहन की अनोखी परंपरा नरक चतुर्दशी की सुबह गोवा में जगह-जगह नरकासुर के पुतले जलाने की परंपरा है। लकड़ी, कपड़े और कागज से बने इन पुतलों को आतिशबाज़ी से सजाया जाता है। सूर्योदय के साथ लोग सामूहिक रूप से इनका दहन करते हैं। यह क्रिया बुराई के अंत और अच्छाई की विजय का प्रतीक मानी जाती है। इस उत्सव में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी उत्साह से भाग लेते हैं। गोवा में दीपावली की शुरुआत नरक चतुर्दशी से गोवा में दिवाली की शुरुआत नरक चतुर्दशी से होती है। इस दिन के बाद घरों की सजावट, दीपदान और पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। यहां माना जाता है कि जब तक बुराई का अंत नहीं होता, तब तक असली दिवाली नहीं मनाई जा सकती। यह पर्व संदेश देता है कि दीपावली का अर्थ केवल दीप जलाना नहीं, बल्कि मन और समाज में छिपी बुराइयों को समाप्त करना भी है। डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 18, 2025, 23:55 IST
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