चिंताजनक: पर्यावरणीय खतरे में दुनिया की 99 फीसदी आबादी, वैश्विक अध्ययन में सामने आया भयावह सच

दुनिया की करीब 99 फीसदी आबादी के स्वच्छ पर्यावरण से जुड़े मौलिक अधिकार किसी न किसी स्तर पर खतरे में हैं। इसका मतलब है कि विश्व के लगभग हर व्यक्ति को जहरीली हवा, असुरक्षित पानी, पौष्टिक भोजन की कमी और चरम मौसम जैसी स्थितियों के बीच जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कोलोराडो यूनिवर्सिटी, बोल्डर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अब तक के सबसे विस्तृत वैश्विक अध्ययन ने मानव सभ्यता के सामने इस भयावह सच को उजागर किया है। अध्ययन के नतीजे इंटरनेशनल जर्नल एनवायरमेंटल रिसर्च कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन से खुलासा हुआ है कि दुनिया में 340 करोड़ लोग यानी लगभग 45% आबादी तीन या उससे अधिक पर्यावरणीय खतरों से प्रत्यक्ष रूप से जूझ रही है। प्रमुख शोधकर्ता नाइया ओर्माजा जुलुएटा के शब्दों में यह केवल स्थानीय समस्या नहीं बल्कि वैश्विक सच्चाई है। लोग वर्षों से अपने इलाकों में पर्यावरण न्याय की लड़ाई लड़ते रहे हैं और हमारा उद्देश्य इन सभी बिखरी आवाजों को एक समग्र तस्वीर में सामने लाना था, जिसे कोई नजरअंदाज न कर सके। अध्ययन में पांच बुनियादी पर्यावरण अधिकारों के आधार पर वैश्विक विश्लेषण किया गया। अमेरिका से होने वाला प्रदूषण भारत में लाता है 12,000 मौतें साल 2022 में संयुक्त राष्ट्र ने ऐलान किया था कि दुनिया के हर इंसान को स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार है। लेकिन यह घोषणा देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है और न ही यह उन पर्यावरणीय नुकसानों को कवर करती है जो एक देश की गतिविधियों से दूसरे देशों को झेलने पड़ते हैं। कमजोर देशों पर अमीर देशों की गतिविधियों का सबसे भारी नकारात्मक असर हो रहा है। ये भी पढ़ें:चिंता: जलवायु संकट से 56% तटीय क्षेत्र पीछे हटे, बदल रहा तटीय शहरों-बस्तियों का भूगोल, 1071 तटों का विश्लेषण शोध यह भी साबित करता है कि पर्यावरणीय संकट का असर समान रूप से नहीं पड़ता। कमजोर और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को सबसे अधिक प्रदूषित हवा, असुरक्षित पानी और जानलेवा गर्मी का सामना करना पड़ता है। वहीं समृद्ध क्षेत्रों में साफ हवा और बेहतर संसाधनों की उपलब्धता उन्हें गंभीर दुष्प्रभावों से बचा लेती है। उन्नत विकासशील देश भी इसकी चपेट में है। अध्ययन में इसका उदाहरण देते हुए कहा गया है कि अमेरिका से होने वाला वायु प्रदूषण भारत में हर साल करीब 12,000 मौतों, जबकि चीन में 38,000 मौतों का कारण बनता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 03, 2025, 03:17 IST
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