लोक कला हमारी सांस्कृतिक धरोहर है : संगीता

सीसीएसयू में तीन दिवसीय निशुल्क लोक कला कार्यशाला का कुलपति ने किया शुभारंभ50 छात्र-छात्राएं सीख रही मिथिला की जादुई चित्रकलामधुबनी के रंगों में रंगा सीसीएसयू संवाद न्यूज एजेंसीमेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में सोमवार से तीन दिवसीय निशुल्क मधुबनी लोक कला प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इसका विषय लोक कला परंपरा सीखने से सृजन तक रहा। इसके शुरू होने के साथ ही विश्वविद्यालय परिसर मिथिलांचल की मधुबनी चित्रकला के जीवंत रंगों से महक उठा। मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने इसका शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि लोककला हमारी सांस्कृतिक धरोहर और पहचान है। मधुबनी चित्रकला नारी सशक्तिकरण, प्रकृति प्रेम और पौराणिक कथाओं का अनुपम संगम है। इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना और सृजन के साथ जोड़ना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से परंपरा को जीवंत रखने और रचनात्मकता को निखारने का आग्रह किया। कार्यशाला के पहले दिन प्रतिभागियों को मिथिला शैली का इतिहास, कोहबर, आरिपन, भरनी-कचनी-गोदना शैलियां, पारंपरिक प्रतीक-चिह्न, ज्यामितीय पैटर्न और प्राकृतिक रंग (हल्दी, गेरू, काजल, पत्तियां आदि) तैयार करने की बारीकियां सिखाई गईं। अगले दो दिनों में राम-सीता विवाह, कृष्ण-लीला, दुर्गा पूजा जैसे पौराणिक प्रसंगों को कैनवास पर उतारना, रंग संयोजन और फिनिशिंग तकनीक सिखाई जाएगी। कार्यशाला को सफल बनाने में डॉ. पूर्णिमा वशिष्ठ, डॉ. रीता सिंह, डॉ. शालिनी धामा, दीपांजलि, कृतिका, खालिद और लोक कलाकार सुश्री विनीता गुप्ता का खास योगदान रहा। उत्कृष्ट कार्य के लिए विनीता गुप्ता, दीपांजलि और कृतिका को सम्मानित किया गया। कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा।चावल के आटे, गोबर, प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है प्रो. अलका तिवारी के संचालन में चल रही कार्यशाला में 50 छात्र-छात्राएं बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। प्रो. अलका तिवारी ने बताया कि मधुबनी कला सदियों पुरानी मिथिला परंपरा है, जिसमें चावल के आटे, गोबर, प्राकृतिक रंग, उंगलियां और निब-पेन का इस्तेमाल होता है। पहले यह कला केवल शादी-विवाह और त्योहारों पर घर की दीवारों पर बनाई जाती थी, आज विश्व स्तर पर इसकी कीमत लाखों में है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 08, 2025, 18:19 IST
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