Firaq Gorakhpuri Poetry: उसे देख कर कब रहा जाए है
तड़प कर जिगर मुँह को आ जाए है उसे देख कर कब रहा जाए है किसू ने न अब तक बताया हमें ग़म-ए-हिज्र में क्या किया जाए है मोहब्बत में ऐ मौत ऐ ज़िंदगी जिया जाए है या मरा जाए है रुमूज़-ए-बहाराँ जो पूछो हो तुम गुल अपने लहू में नहा जाए है मुझे पा के तन्हा मिरी बेकसी सर-ए-शाम बिस्तर लगा जाए है मुझे गुमरही का नहीं कोई ख़ौफ़ तिरे घर को हर रास्ता जाए है हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 20, 2025, 19:09 IST
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