Vivek Raina: मुश्किलों से लड़कर बनाई पहचान, पलायन का दंश झेला; कम तनख्वाह से शुरुआत की, आज करोड़ों का कारोबार
बात नब्बे के दशक की है। कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक शानदार पुश्तैनी घर था। चौदह कमरों वाले इस घर में एक कश्मीरी पंडित परिवार रहता था। हंसी-खुशी की रौनक घर के हर कोने में बिखरी रहती थी। लेकिन नियति का खेल कभी किसी ने समझा है क्या भला आतंकवाद की आग ने सब कुछ बदल दिया। एक खुशहाल परिवार पल भर में बेघर हो गया। परिवार को चौदह कमरों की ठाट-बाट से सिमटकर एक छोटे-से किराये के कमरे में जिंदगी गुजारनी पड़ी। इसी परिवार में एक छोटा बच्चा भी था। जहां उम्र के इस दौर में बच्चे ख्वाबों में खोए रहते हैं, वहीं यह बच्चा मजबूरियों से जूझना सीख रहा था। समय का पहिया घूमता रहा। आज, वही बच्चा, जिसने अपनी आंखों के सामने अपना घर और बचपन उजड़ते देखा था, करीब 400 करोड़ रुपये से ज्यादा के कारोबार वाली कंपनी एक्साइटेल का सूत्रधार है। हम बात कर रहे हैं एक्साइटेल ब्रॉडबैंड के सह-संस्थापक और सीईओ विवेक रैना की। उन्होंने शुरुआत महज 10,000 रुपये की नौकरी से की, लेकिन कड़ी मेहनत, लगन और दूरदर्शी सोच से विवेक रैना ने इंटरनेट सेवा की दुनिया में एक नया अध्याय लिखा। विवेक रैना केवल इंटरनेट केबल ही नहीं बिछा रहे हैं, बल्कि वह भारत के डिजिटल भविष्य की डोर बुन रहे हैं, जो इंटरनेट सबके लिए के सपने को साकार करता है। विवेक की कहानी आज उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है, जो चुनौतियों और कठिन हालातों से हार मानकर अपने सपनों को हासिल करने की ख्वाहिश छोड़ देते हैं। एक कमरे के घर में रहा पूरा परिवार 90 के दशक में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का पलायन चरम पर था। ऐसे में विवेक का परिवार भी इससे बच न सका और परिवार को कश्मीर छोड़कर जम्मू पलायन करना पड़ा। पिता, जो राज्य सरकार में सरकारी मुलाजिम थे, दिन-रात मेहनत करते। घर चलाने के लिए अतिरिक्त काम भी करते। जम्मू में बड़ी मुश्किल से किराये पर एक कमरा मिला, जिसमें पूरा परिवार ठसाठस भरे जीवन को जीने पर मजबूर था। जम्मू की गर्मी एक और बड़ी समस्या थी, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। माता-पिता की यह सीख गहराई से विवेक के मन में बैठ गई कि शिक्षा और मेहनत ही असली संपत्ति है। दस हजार रुपये से सफर की शुरुआत विस्थापन के कारण विवेक की पढ़ाई में छह महीने का अंतर आया। उन्होंने हालात से जूझते हुए हाई स्कूल और उसके बाद 1994 में 55 फीसदी अंकों के साथ 12वीं की परीक्षा पास की। अंक उम्मीद से कम थे, सो उनके साथ-साथ परिवार भी निराश हुआ। पिता को खुश करने के लिए उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। हालांकि, उन्हें दर्शनशास्त्र और साहित्य बेहद पसंद थे। इसी कारण डिप्लोमा करने के साथ-साथ उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में बीए (डिस्टेंस लर्निंग) भी किया। उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से मार्केटिंग में एमबीए किया। उन्हें हैथवे ब्रॉडबैंड कंपनी में बिजनेस डेवलपमेंट ऑफिसर की नौकरी मिली। उनका काम था छोटे-छोटे कार्यालयों को ब्रॉडबैंड कनेक्शन बेचना। इसके बदले उन्हें मात्र 10,000 रुपये मासिक वेतन मिलता था। धीरे-धीरे उन्होंने कई कंपनियों में अनुभव हासिल किया। फिर वे दोबारा हैथवे लौटे, लेकिन इस बार उत्तर भारत के बिजनेस हेड के पद पर। यह उनके कॅरिअर का महत्वपूर्ण पड़ाव था। बुल्गारिया से भारत तक हैथवे में काम करते समय विवेक की मुलाकात बुल्गारिया के कुछ उद्यमियों से हुई। वे लोग बुल्गारिया में अपना इंटरनेट कारोबार बेच चुके थे और भारत में नए अवसर तलाश रहे थे। विवेक खुद भी कुछ बड़ा करने का सपना संजोए बैठे थे। यह मुलाकात मानो उनके लिए एक सुनहरा मौका बनकर आई। उन्होंने तय कर लिया कि अब उन्हें सिर्फ नौकरी नहीं करनी, बल्कि खुद का कुछ बनाना है, कुछ ऐसा जो लाखों लोगों की जिंदगी बदल सके। वर्ष 2015 में विवेक रैना ने बुल्गारियाई सहयोगियों के साथ मिलकर एक्साइटेल ब्रॉडबैंड की स्थापना की। यह शुरुआत आसान नहीं थी। उन्हें बार-बार असफलताओं का सामना करना पड़ा, तकनीकी चुनौतियां आईं, बाजार में प्रतिस्पर्धा कड़ी थी, लेकिन विवेक ने हार मानने के बजाय हर असफलता से सीख ली। इसी का परिणाम है कि आज उनकी कंपनी का कारोबार चार सौ करोड़ रुपये पार कर चुका है। युवाओं को सीख हर असफलता आपको कुछ न कुछ सिखाती है और आपको बेहतर बनाती है। ऐसा कुछ करें, जिसके प्रति आप जुनूनी हों। आप जिस काम में अच्छे हैं, उसमें कोई भी आपको हरा नहीं सकता। अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करके आप दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं। आप उसी क्षण सफल होना शुरू कर देते हैं, जब आप सफल होने का निर्णय लेते हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 08, 2025, 07:30 IST
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