Education For Bharat: 'टेक्नोलॉजी बदल रही शिक्षा का स्वरूप', भाजपा सांसद ने US की शिक्षा प्रणाली पर उठाए सवाल

अगर सब कुछ आर्थिक प्रगति, अच्छे रोजगार और भौतिकतावादी जीवन स्तर से हासिल होता तो अमेरिका आज स्वर्ग बन जाता लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसे हमारे महापुरुषों ने बहुत पहले समझ लिया था तभी वे नैतिकता के साथ विकास की बात करते हैं। यह विचार भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी शनिवार को अमर उजाला एजुकेशन फॉर भारत कॉन्क्लेव में व्यक्त किए। सुधांशु त्रिवेदी के मुताबिक नई उभरती हुई टेक्नोलॉजी शिक्षा के स्वरूप को बदल रही है। एआई युग में नेतृत्व, नैतिकता और राष्ट्र-निर्माण विषय पर आयोजित सत्र में उन्होंने भविष्य के एजुकेशन सिस्टम पर बात की। सुधांशु ने कहा कि दुनिया के सबसे शिक्षित देश अमेरिका के शिक्षण संस्थानों में गोलियां चल रही हैं। इसे रोकने के बजाय वहां गोलियों से बचने की शिक्षा दी जा रही है। मसलन, एआई आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया एआई मिशन की घोषणा की। रिसर्च के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन तेजी से आएगा। यही वजह है कि सरकार ने अभी फोकस शहरी विकास और हेल्थ केयर पर किया है लेकिन यह शिक्षा के हर क्षेत्र में आ गया। उदाहरण के लिए, इतिहास में भी अगर देखना हो, तो हो सकता है कि एआई से ऐसे कॉम्बिनेशन आए कि सिंधु सभ्यता की लिपि को कुछ हद तक पढ़ाने में सफल हो जाएं। सुधांशु त्रिवेदी ने बताया कि एनईपी बुनियादी बदलाव लेकर आ रही है। मातृभाषा में पढ़ाई होने से बच्चे का फैकल्टी डेवलपमेंट बेहतर होता है, स्कूल में जाने का खौफ कम होगा। अच्छा प्रदर्शन करने वाले शैक्षणिक संस्थान राजस्व पैदा कर सकेंगे। सिर्फ सरकार पर निर्भरता नहीं रहेगी। सरकार और समाज मिलकर शिक्षा व्यवस्था को आगे बढ़ाएगा। एआई का विकास व्यक्ति केंद्रित हो सुधांशु त्रिवेदी के मुताबिक, पीएम मोदी ने एआई समिट में कहा कि एआई का जो विकास होना चाहिए, वह मुद्रा केंद्रित नहीं, व्यक्ति केंद्रित होना चाहिए। हमारे यहां ज्ञान के जो डायमेंशन हैं, उसमें एक है अविद्या, और एक है विद्या। सारा वस्तुपरक ज्ञान अविद्या है, इसके लिए ना किसी को पात्रता की जरूरत है, ना किसी गुरु की जरूरत है। विद्या, वह मुक्ति का मार्ग है। सा विद्याया विमुक्तये। इसके लिए आपको अपने अंदर परिवर्तन करना पड़ेगा। इसके लिए पात्रता की जरूरत है। अंग्रेजों से पहले भारत साक्षर सुधांशु त्रिवेदी ने बताया कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत पूर्ण साक्षर था। हर गांव में एक स्कूल था, जिसमें जाति-धर्म से परे समाज के हर तबके को पढ़ने व पढ़ाने की सुविधा थी। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजों की रिसर्च का भी जिक्र किया। असल दिक्कत मैकाले की शिक्षा पद्धति से हुई। ये भी पढ़ें:Education for Bharat: 'लंदन की कॉपी' कर रहे शिक्षित लोग, गांधी जी भी थे इससे चिंतित- सुधांशु त्रिवेदी महात्मा गांधी ने बेहतर शिक्षा का किया जिक्र सुधांशु त्रिवेदी ने बताया कि हिंद स्वराज में महात्मा गांधी ने कहा है कि उनको बिना पढ़े-लिखे, गरीब भारतीयों को देख कर चिंता नहीं होती है, भारत के पढ़े लिखे लोगों को देख कर चिंता उत्पन्न होती है। वह इसलिए कि जिस ढंग की शिक्षा पद्धति चल रही है, वो क्या करना चाह रही है, वो हम इंग्लैंड से मुक्त होकर इंग्लैंड की कॉपी बनना चाह रहे हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 07, 2025, 04:31 IST
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