दहेज प्रथा: अतृप्त लालच और परंपरा का मुखौटा उतारने के लिए महिलाओं को होना होगा सशक्त, लेकिन इसका ये हो पैमाना

उन्होंने मेरी मां के शरीर पर कुछ डाला, थप्पड़ मारे और लाइटर से आग लगा दी। भले ही किसी को यह घटना इतनी भयावह न लगे, लेकिन ये शब्द छह वर्षीय बच्चे के हैं, जो किसी को भी निराश कर सकती है। निक्की भाटी के छह साल के बच्चे को यह याद है कि उसने आखिरी बार अपनी मां को कब देखा था। देश की राजधानी से महज कुछ ही किलोमीटर दूर ग्रेटर नोएडा के व्यस्त इलाके में आधी रात को यह वीभत्स अपराध हुआ। एक मध्यवर्गीय परिवार, जहां दो भाई दो बहनों से शादी करके अपने माता-पिता के साथ रहते थे, में इसे अंजाम दिया गया। नौ वर्ष की शादी के बाद युवा युगल निक्की एवं विपिन का रिश्ता स्थिर होना चाहिए था। भले ही शादी की रौनक फीकी पड़ गई होगी, एक नियमितता और थोड़ी-सी बोरियत भी रिश्ते में आ गई होगी, क्योंकि घर-गृहस्थी और बच्चों की परवरिश उनकी प्राथमिकताओं पर हावी हो गई होगी। 28 साल की निक्की खूबसूरत थी और उसकी कद-काठी भी पतली थी। किशोरावस्था में ही विवाहित निक्की की इंस्टाग्राम पर मौजूदगी थी और वह अपनी बड़ी बहन कंचन के साथ एक ब्यूटी पार्लर भी चलाती थी। उसके इंस्टाग्राम पोस्ट से स्पष्ट है कि दोनों बहनें तेजी से प्रभावशाली बन रही थीं, और सोशल मीडिया पर भी वैसी ही चमक-दमक थी। उनका काम मुख्यतः दुल्हनों को सजाना था। स्वस्थ, उत्साही और सहज रहने वाली ये बहनें अपनी बेहतर जिंदगी, थोड़ी आर्थिक आजादी के छोटे-से सपने के लिए एक रास्ता बनाने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन यह सपना दुःस्वप्न बन गया। निक्की की जो आखिरी रील दुनिया देखेगी, उसमें वह आग की लपटों में घिरी सीढ़ियों से नीचे भागती हुई दिखाई देगी, और उसका पति और सास उसका पीछा कर रहे होंगे। कैमरे के पीछे उसकी बड़ी बहन कंचन बेहोश होने से पहले के इन पलों को रिकॉर्ड कर रही थी। जब वह होश में आई, तो उसकी बहन जलकर खाक हो चुकी थी। दहेज हत्या के सर्वविदित अपराध का यह एक और उदाहरण है। लेकिन कैमरे में कैद हुई इस क्रूरता के कारण शायद इन घृणित कृत्यों के पीछे की चुप्पी और सरासर नग्न लालच, वास्तविक समय में दुनिया के सामने उजागर हो गया है। बहुत लंबे समय से महिलाओं और उनके परिवार वालों ने व्यक्तित्व और यहां तक की सुरक्षा की अनदेखी करके वैवाहिक रिश्ते के सामाजिक सम्मान के लिए चुप्पी का रास्ता चुना है। यदि इसकी कीमत महिलाओं की आवाज को दबाना है, उन्हें स्वतंत्रता प्राप्त करने, व्यवसाय करने और न केवल जीवित रहने, बल्कि समृद्ध होने से हतोत्साहित करना है, तो हमें इसकी कीमत चुकानी होगी। बहुत लंबे समय से हम एक महिला की यात्रा को जीवित रहने की परीक्षा के रूप में देखते आए हैं, जिसमें दुनिया के अन्याय को धैर्य के साथ सहना शामिल है, क्योंकि यही तो मजबूत महिलाएं करती हैं। सब कुछ देखती-सुनती हैं, पर आगे बढ़ती रहती हैं। यह मानना तो बिल्कुल गलत है कि समाज के एक खास वर्ग में ही ऐसा होता है, यहां तक कि अरबपति तबका भी इसकी जद में है। सनसनीखेज समाचारों के चक्र में हम खुद को निक्की जैसी त्रासदियों में घसीटते हुए पाते हैं और न्याय की मांग करते हैं। सौभाग्य से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, इसलिए उम्मीद है कि न्याय मिलेगा। बहरहाल, हम उस मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां न्याय ही काफी नहीं है। देश भर में हजारों नहीं, लाखों निक्की इसी तरह की नियति का इंतजार कर रही हैं। कुछ बच जाती हैं और कुछ नहीं। कुछ को उत्तर प्रदेश जैसी सख्त कानून-व्यवस्था मिलती है, जहां अपराधी को सजा मिलती है, फिर भी कई मामलों में अपराधी बच निकलते हैं, और सजा की दर बेहद कम होती है। दहेज हिंदू परिवारों की एक व्यवस्थागत समस्या ही नहीं है, बल्कि एक अपवित्र सांस्कृतिक कुप्रथा भी है। सरकार ने इस बुराई की व्यापकता को पहचाना है और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना की पहल की है, जिसके तहत दुल्हन और उसके परिवारों के लिए आर्थिक मदद दोगुनी करके एक लाख रुपये कर दी गई है, जिसमें से 60 हजार रुपये दुल्हन के खाते में जाते हैं। ये कदम सही दिशा में हैं, लेकिन समाज अपनी जिम्मेदारी कब स्वीकार करेगा दरअसल, लालच की कोई सीमा नहीं होती। सरकार मदद कर सकती है, लड़की का परिवार शादी के लिए अपनी संपत्ति बेच सकता है, लेकिन अगर दूल्हे का परिवार लालची है, तो उसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता। इन मामलों में लड़की ऐसी स्थिति में फंस जाती है, जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं होता। उसका परिवार तलाक के सामाजिक कलंक के चलते चाहता है कि रिश्ता चलता रहे। दूसरी ओर, पति का परिवार अधिकतम आर्थिक लाभ उठाने के लिए एक टीम के रूप में काम करता है। ऐसे में, एक समाज के रूप में यह जरूरी है कि हम तलाक को सकारात्मक ढंग से देखें। हालांकि, तलाक किसी रिश्ते के लिए वांछनीय परिणाम नहीं है, लेकिन यह मौत से कहीं बेहतर है। और निक्की जैसी स्थिति में तलाक एक विफलता नहीं, बल्कि जीवन रक्षा है। जब हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं, तो यह केवल शिक्षा या वित्त के लिए नहीं है, बल्कि महिलाओं को मानसिक रूप से सशक्त बनाने को लेकर है, ताकि समाज द्वारा खड़ी की गई बाधाओं को हराया जा सके। महिलाओं को बुरे रिश्तों से बाहर निकलने और कलंकित महसूस न करने के लिए सशक्त महसूस करने की जरूरत है। इसके लिए समाज को आगे आकर अपनी बात पर अमल करना होगा। और इसके लिए सोच में बदलाव की सख्त जरूरत है। एनसीआरबी के वार्षिक आंकड़े हर साल हजारों दहेज हत्याओं का रिकॉर्ड रखते हैं। निक्की और उसकी बहन कंचन ने लगभग एक दशक तक शारीरिक और मानसिक शोषण सहा, इसके बावजूद उन्होंने अपनी जिंदगी संवारने और अपनी पहचान बनाने की कोशिश की। अंत में निक्की को अतिरिक्त दहेज के लालच ने मार डाला। क्या एक औरत, एक मां, एक पत्नी की जिंदगी की कीमत बस इतनी ही है विपिन जैसे हत्यारे, अतृप्त लालच में डूबे, कब तक परंपरा का मुखौटा पहने बेफिक्र घूमते रहेंगे उसकी मां से सवाल कौन पूछेगा, जिसने एक स्त्री होते हुए हत्या में मदद की। कानून अपना काम करेगा और उत्तर प्रदेश पुलिस ने तेजी से कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन समाज को इन सवालों का जवाब अवश्य देना चाहिए। इस सच्चाई से हम मुंह नहीं मोड़ सकते। महिलाओं का असली सशक्तीकरण उनके मन को सशक्त बनाने में निहित है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 26, 2025, 06:33 IST
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