Deadly Smoke: लोगों के दिमाग की सुरक्षा कोशिकाएं तोड़ रहा है डीजल का धुआं, कमजोर हो रही है प्रतिरक्षा प्रणाली
अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में सामने आया है कि डीजल वाहनों से निकलने वाला धुआं दिमाग की प्रतिरक्षा कोशिकाओं माइक्रोग्लिया को कमजोर कर सकता है। शोध के अनुसार, पुराने डीजल इंजनों से उत्सर्जित कण माइक्रोग्लिया की सफाई, सूजन नियंत्रण और जीन गतिविधि को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। दिमाग की सुरक्षात्मक प्रणाली पर बढ़ते खतरे के बावजूद महानगरों में वाहनों की संख्या दिनों-दिन तेजी से बढ़ रही है। अध्ययन में खुलासा हुआ है कि डीजल के धुएं में मौजूद अत्यंत सूक्ष्म कण माइक्रोग्लिया की स्वाभाविक कार्यक्षमता में रुकावट पैदा करते हैं। माइक्रोग्लिया दिमाग और मेरुमज्जा की प्रतिरक्षा कोशिकाएं होती हैं, जिनका कार्य रोगाणुओं से सुरक्षा देना, मृत कोशिकाओं की सफाई करना, न्यूरोनल नेटवर्क बनाए रखना और चोटों की मरम्मत करना होता है। जब यह गतिविधियां प्रभावित होती हैं तो दिमाग में क्रोनिक न्यूरोइन्फ्लेमेशन की स्थिति बनती है, जिसके कारण न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्टर्न फिनलैंड के शोधकर्ताओं ने किया है और इसे जर्नल एनवायरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित किया गया है। माइक्रोग्लिया कोशिकाओं के अध्ययन के लिए इंसानी स्टेम सेल से विकसित मॉडल माइक्रोग्लिया (आइएमजीएलएस) का उपयोग किया गया। इसमें पुराने और आधुनिक डीजल इंजनों से उत्सर्जित कणों की तुलना की गई, ताकि यह समझा जा सके कि दोनों प्रकार के इंजन दिमाग की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को किस तरह प्रभावित करते हैं। पुराने और नए इंजनों के प्रभाव में गहरा अंतर : शोध के निष्कर्ष में यह बात स्पष्ट हुई कि पुराने डीजल इंजनों से निकले कण माइक्रोग्लिया की गतिविधि में बड़े बदलाव लाते हैं और इनसे जीन अभिव्यक्ति तक प्रभावित हो जाती है। आधुनिक यूरो-6 मानक वाले इंजनों और रिन्यूएबल डीजल से निकले कणों का असर कम पाया गया, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। हानिकारक प्रभाव का संबंध विशेष रूप से काले कार्बन और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे तत्वों से पाया गया, जो माइक्रोग्लिया में तनाव और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सिग्नल जैसे ट्रेम-1 और टोल-लाइक रिसेप्टर सिग्नलिंग को अत्यधिक सक्रिय कर देते हैं, जिससे दिमाग की सफाई और संतुलन बनाए रखने वाली प्रक्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं। इसकी प्रमुख शोधकर्ता डॉ. सोहवी ओहटोनेन ने कहा कि माइक्रोग्लिया दिमाग की पहली सुरक्षा पंक्ति हैं और पुराने डीजल इंजनों से निकले कण इनके काम को गंभीर रूप से कमजोर कर देते हैं। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहन विभिन्न अध्ययनों, जिनमें आइआईटी कानपुर, द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट और सफर (भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान) शामिल हैं, के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहन हैं। इन अध्ययनों में बताया गया है कि दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 के लगभग 40% उत्सर्जन और नाइट्रोजन ऑक्साइड के 81% उत्सर्जन के लिए सड़क परिवहन जिम्मेदार है। सीएसई के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में वाहनों की संख्या सालाना 15.6% की दर से बढ़ रही है। हर दिन औसतन 1100 से अधिक दोपहिया वाहन और 500 निजी कारें रजिस्टर हो रही हैं। सार्वजनिक परिवहन की कमजोर स्थिति भी परेशानी को बढ़ा रही है, क्योंकि प्रति लाख आबादी पर केवल 45 बसें उपलब्ध हैं, जबकि न्यूनतम आवश्यकता 60 बसों की मानी जाती है। इस स्थिति के कारण लोग सार्वजनिक परिवहन अपनाने के बजाय निजी वाहन खरीदने को मजबूर हो रहे हैं और इससे प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। डीजल प्रदूषण के कारण दिमाग की सुरक्षा कोशिकाओं की मजबूती कमजोर हो रही है, माइक्रोग्लिया की गतिविधियां बाधित हो रही हैं, दिमाग में सूजन और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है और वैज्ञानिक दुनिया भर में लगातार चेतावनी दे रही है। इसके बावजूद सड़कों पर वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और हर रोज उत्सर्जन नया रिकॉर्ड बना रहा है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 04, 2025, 03:26 IST
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