Tonk: पांच हजार खिलाड़ी धकेलेंगे 60 किलो का दड़ा, आवां कस्बे में आज खेला जाएगा दुनिया का अनोखा खेल

न कोई गोल पोस्ट होता है और न कोई रेफरी लेकिन 60 किलो वजनी दड़े को हूबहू फुटबाल की तरह खेलते हैं। यह अजब-गजब खेल टोंक के आवां कस्बे में हर साल 14 जनवरी को बारहपुरों (आवां कस्बे के आस पास के 12 गांव ) के लोग रंग-बिरंगी पोशाक में खेलते हैं। कोरोना के चलते इस बार दो साल बाद इस दड़ा महोत्सव का आयोजन कल होगा। इस खेल की शुरुआत पहले परंपरा के अनुसार आवां रियासत से जुड़े लोग इसे बनवाकर गढ़ के चौक में लाकर दड़े को ठोकर मारकर करेंगे। फिर सामने गोपाल भगवान के चौक में इंतजार कर रहे पांच हजार खिलाड़ी (ग्रामीण) खेलने के लिए दौड़ पड़ते हैं। आस पास के मकानों की छतों पर बैठी सैकड़ों महिलाएं, युवतियां खिलाडि़यों का हौसला बढ़ाती हैं। इस खेल में एक अकाल-सुकाल की परंपरा जुड़ी हुई है। अकाल-सुकाल की परंपरा इस खेल में एक अकाल-सुकाल की परंपरा जुड़ी हुई है। खेलते-खेलते यह आवा अखनियां दरवाजा की ओर चला जाता है तो प्रदेश में अकाल पड़ेगा और यह दड़ा दूनी दरवाजा की ओर चला जाता है तो सुकाल के संकेत मिलते हैं। दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक खेला जाने वाला यह दड़ा अगर चौक में ही रह गया तो न तो अकाल माना जाएगा और न सुकाल माना जाएगा। यह सामान्य साल का संकेत माना जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे 60 किलो के दड़े का आयोजन दुनिया में आवा के अलावा अन्य जगह कही भी हुआ होता है। इसे और भव्य बनाने के लिए पंचायत प्रशासन भी सहयोग करती है। मेला जैसा रहता है माहौल गांव में इस खेल का काफी महत्व है। इस दिन मेहमान भी इसे देखने के लिए दूर दराज से आते हैं। आवा में दिन भर लोगों को आवाजाही रहती है। विभिन्न तरह की दुकाने सजती हैं। पुलिस का अतिरिक्त जाप्ता भी कानून व्यवस्था के हिसाब से रहता है। सरपंच दिव्यांश एम भारद्वाज ने बताया कि पिछले दो साल कोरोना के चलते आवा महोत्सव का आयोजन नहीं हुआ था। इस बार उत्साह के साथ इसे खेलने के लिए ग्रामीण आतुर हैं। इसके सफल आयोजन के लिए पंचायत की ओर से पूरे इंतजाम किए गए हैं। जूट से तैयार करते हैं दड़े को इस दड़े को राजपरिवार के सदस्य गढ़ में तीन-चार दिन पहले जूट को रस्सियों से गूंथ कर तैयार करवाते हैं। अभी इसे तैयार कर करवा लिया है और इसका वजन 60 किलो करने के लिए पानी में डुबो दिया जाता है। 14 जनवरी को सुबह निकाल लिया जाता है। फिर उसे दोपहर 12 बजे खेलने के लिए गोपाल चौक में रखवा दिया जाता है। सेना में भर्ती के लिए खिलाते थे लोगों को बताया जाता है कि रियासत काल में इस खेल की शुरुआत तत्कालीन सेना में भर्ती के लिए की थी। इस खेल को ज्यादा देर तक खेलने वाले व्यक्ति को सेना में उसकी खेल कौशल को देखकर भर्ती किया जाता था।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 14, 2023, 11:48 IST
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