भरोसा और चुनौतियां: ट्रंप के टैरिफ के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था पर यकीन सकारात्मक संकेत, सतर्क नीति-निर्माण अहम

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाए जाने की घोषणा के आज लागू होने के पहले अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों-पहले एस एंड पी और अब फिच का यह संकेत कि अमेरिकी टैरिफ का हम पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिहाज से आश्वस्त करता है। दुनिया को दूसरे शीतयुद्ध काल में ले जाने पर तुले अमेरिका को बेशक लगता हो, कि इन हथकंडों से वह भारत को दबाव में ले आएगा, लेकिन वस्तु-स्थितियां कुछ और ही इशारा कर रही हैं। अमेरिका को भारत से होने वाला निर्यात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज दो फीसदी है। इसके अलावा, भारत बहुत तेजी से विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते कर रहा है, जो यकीनन नई वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देंगे। दरअसल, रूस से तेल खरीदने का मामला बताकर भारत पर अतिरेक टैरिफ लागू कर अमेरिका ने अपनी अहंमन्यता और दोहरे आचरण का सच पूरी तरह उजागर कर दिया है, तो दूसरी तरफ अगर अमेरिकी रेटिंग एजेंसियां ही भारत की अर्थव्यवस्था पर भरोसा जता रही हैं, तो यह अकारण नहीं है। रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास/ ईरान युद्धों की शुरुआत के बाद से ही वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर मंडरा रहे संकट के बावजूद हम देख चुके हैं कि वैश्विक रेटिंग एजेंसियां लगातार भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बताती रहीं। एस एंड पी रेटिंग एजेंसी ने करीब दो हफ्ते पहले अठारह वर्ष में पहली बार भारत की साख में इजाफा किया है, तो इसका कुछ अर्थ है। फिच रेटिंग ने भी वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, जो बीबीबी श्रेणी के अन्य देशों के औसत से कहीं अधिक है। यह मजबूत आर्थिक वृद्धि सार्वजनिक पूंजीगत खर्च, निजी उपभोग और अनुकूल जनसांख्यिकी से प्रेरित है। इसके अतिरिक्त, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 695 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो करीब 11 महीनों के आयात को कवर करने में सक्षम है। ये आंकड़े देश की आर्थिक स्थिरता को रेखांकित करते हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं, जिनकी ओर फिच भी इशारा करती है। फिच का अनुमान है कि 2026 तक भारत का सरकारी कर्ज जीडीपी के 56.1 फीसदी तक पहुंच सकता है, जो भले ही कई विकसित देशों से कम हो, लेकिन भारत जैसे उभरते बाजार के लिए चिंता का विषय है। वजह यह है कि देश को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश की जरूरत है, जिससे राजकोषीय संसाधनों पर दबाव पड़ना तय है। ऐसे में जरूरी है कि नीति-नियंता कर्ज प्रबंधन का एक स्पष्ट रोडमैप बनाएं। फिच की स्थिर रेटिंग से स्पष्ट है कि भारत हर तरह की चुनौती झेलने में सक्षम है, लेकिन यह सतर्क नीति-निर्माण की मांग भी करती है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 27, 2025, 07:34 IST
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