Children s Day 2025: मजदूरी की जमीन पर उगते सपने, ईंट उठाने वाले नन्हे हाथ अब कलम से गढ़ रहे अपना भविष्य

सुबह की धूप में धूल से भरी सड़क के किनारे, जब महिलाएं सीमेंट के कट्टे और लोहे की छड़ें उठाती हैं, तो उनके छोटे-छोटे बच्चे पास की मिट्टी में खेलते हुए जिंदगी की पहली तस्वीर बनाते हैं। कभी इन बच्चों के हाथों में किताब की जगह ईंट हुआ करती थी।सपनों में स्कूल की घंटी नहीं, ठेकेदार की सीटी गूंजती थी। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। क्योंकि कुछ ऐसी महिलाएं हैं, जो कभी खुद उन्हीं बस्तियों की आवाज थीं, आज उन्हीं बच्चों के भविष्य की राह बन गई हैं। छोटी बस्तियों में शिक्षा अब सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की लड़ाई बन चुकी है। जहां बच्चों के नाम अब स्कूल की उपस्थिति रजिस्टर में दिखते हैं। मांओं की हथेलियों की दरारों से अब उम्मीद झरती है, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि उनके बच्चों का कल अब उन्हीं की तरह धूल में नहीं, किताबों में लिखा जाएगा। सुनीता की मुस्कान में उम्मीद की चमक द्वारका सेक्टर 21 के पास एक निर्माण स्थल पर काम करतीं सुनीता देवी रोज सुबह 7 बजे मजदूरी पर जाती हैं। उनके दो बच्चे सोनू (3) और मोनी (6) अब पास के ही क्रैचर में पढ़ते हैं। सुनीता कहती हैं, कि पहले बच्चे वहीं साइट पर मिट्टी में खेलते थे। सिर पर बोरी उठाते वक्त बस यही डर रहता था कि कहीं कोई गाड़ी उन्हें छू न जाए। अब जब वो स्कूल बैग लेकर जाते हैं, तो मन हल्का हो जाता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 14, 2025, 05:06 IST
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