Ground Zero : विस्थापन की मार झेलने वालों ने बंकरों में समेट ली गृहस्थी, अखनूर के लोगों को अब फैसले का इंतजार

भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों की आंच धीरे-धीरे शेष बचे सीमावर्ती इलाकों तक पहुंचने लगी है। जम्मू-कश्मीर के अखनूर का गड़खाल भी इससे अछूता नहीं हैं। एक तरफ चिकन नेक तो दूसरी तरफ चिनाब से घिरे इलाके की सीमा पर पाकिस्तान की तीन चौकियां हैं। बीते कुछ वर्षों से सामान्य जिंदगी जी रहे यहां के बाशिंदों की दिनचर्या भी पहलगाम हमले के बाद बदल गई है। लोगों ने सतर्कतावश अपनी पूरी की पूरी गृहस्थी बंकरों में शिफ्ट कर ली है। पाकिस्तान को सबक सिखाने की इच्छा रखने यहां के लोगों का कहना है कि विस्थापन की मार तो हम झेल चुके हैं, हमें डर नहीं लगता। हां, सावधानी बहुत जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान का कोई भरोसा नहीं है। गड़खाल में घर के बाहर बैठे थे शमशेर सिंह। सीमाओं के हाल पर कहते हैं कि मेरी उम्र 86 साल हो चुकी है। तीन जंग हमने देखी है। हर बार विस्थापन झेलते आए हैं। वक्त बदल गया है, बात तरक्की की होनी चाहिए। अगर पाकिस्तान नहीं मान रहा, तो उससे निर्णायक जंग होनी चाहिए। हम चलने को हुए तो कहने लगे कि अब सुन लो अतीत के भी कुछ किस्से, हमारा दर्द कुछ कम हो जाएगासरहद की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि जहां हम हैं, यह इलाका पाकिस्तान के उस संकरे भूभाग के पास स्थित है, जिसे चिकन नेक कहा जाता है। इसी हिस्से से अक्सर घुसपैठ और गोलाबारी होती रही है। 2013 में पाकिस्तानी फायरिंग में कई ग्रामीण घायल हुए थे। 2016 में भारी गोलीबारी के बाद लोगों को अस्थायी शिविरों में भेजना पड़ा था। उन दिनों को याद करते हुए लोगों की आंखों में एकबारगी दहशत तैर जाती है। 65 परिवार के बीच एक बंकर फत्तू कोटली गांव में रविवार को अली मोहम्मद (52) के नेतृत्व में ग्रामीणों ने पाकिस्तान मुर्दाबाद और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने के बाद कहा-हम हर हालात के लिए तैयार हैं। पाकिस्तान अब कैंसर बन चुका है, जिसे जड़ से खत्म करना होगा। हर बार डर के साये में जीना अब मुमकिन नहीं। केंद्र सरकार को चाहिए कि अब एक बार निर्णायक कार्रवाई हो। उन्होंने बताया कि फत्तू कोटली गांव में 60-65 मुस्लिम परिवार रहते हैं, पूरे गांव के लिए सिर्फ एक सामुदायिक बंकर है। वे कहते हैं कि प्रशासन को इसकी संख्या बढ़ानी चाहिए। शाम होते ही बंकरों में सिमट जाती है जिंदगी : नीलम सिंह कहती हैं कि वह अपने परिवार के साथ हर शाम घर के नीचे बने पक्के बंकर में चली जाती हैं। अब यह रोज की बात हो गई है, फायरिंग की आशंका हमेशा बनी रहती है। उनकी भाभी ऊषा सिंह ने कहा कि परिवार की दोनों बेटियां मानवी और विधि अब शाम को बंकर में ही पढ़ाई करती हैं। बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता है, मगर अब हम किसी भी हालात के लिए तैयार हैं। खेत जाने से बच रहे, समय से पहले फसलें काट रहे : सीमा पर गोलीबारी की आशंका से चिंतित किसान अब समय से पहले ही फसलें काट रहे हैं। बिलाल शर्मा ने कहा कि हर दिन पाकिस्तानी सेना की ओर से फायरिंग हो रही है, आगे हालात और भी बिगड़ गए तो फसलें बर्बाद हो जाएंगी। पूर्व सरपंच कुलदीप सिंह ने बताया, खेतों तक पहुंचना जोखिम भरा हो गया था, इसलिए कटाई जल्दी खत्म कर दी है। ग्रामीणों का कहना है कि बार-बार की गोलीबारी और विस्थापन उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। अब सरकार को कोई स्थायी रणनीति बनानी चाहिए, जिससे सीमावर्ती नागरिक चैन की सांस ले सकें। हर बार पलायन कराना कोई हल नहीं, पाकिस्तान को सख्त सबक सिखाना जरूरी है। जानिए यह भी चिकन नेक, जिसे अखनूर डैगर भी कहा जाता है, पाकिस्तान के सियालकोट जिले में स्थित संकीर्ण भूमि पट्टी है, जो जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में भारतीय सीमा की ओर बढ़ती है। यह भूभाग रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके माध्यम से पाकिस्तान जम्मू क्षेत्र में गहराई तक प्रवेश कर सकता है। पाकिस्तान बेनकाब:भारत को दोषी बताने के हर झूठ का पर्दाफाश हताशा में दुष्प्रचार, फैला रहा मनगढ़ंत कहानियां 1965 के भारत-पाक युद्ध में ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के तहत पाकिस्तान ने इसी मार्ग से अखनूर पर कब्जा करने की कोशिश की थी, जिससे भारतीय सेना की आपूर्ति और संपर्क काटे जा सकते थे, लेकिन यह योजना असफल रही। 1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने इस इलाके पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। यह क्षेत्र आज भी दोनों देशों के बीच सामरिक तनाव का केंद्र बना हुआ है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: May 05, 2025, 06:06 IST
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