Kangra News: लापरवाही के मलबे दब गई चंबे दी बावड़ी

लंबागांव (कांगड़ा)। जो बावड़ी कभी लोगों की प्यास बुझाती थी, आज खुद संवेदनाओं और सिस्टम की बेरुखी में मलबे में दब गई है। एक दौर था जब चंबे दी बावड़ी गर्मियों में लंबागांव और आसपास के गांवों के लिए जीवनदायिनी साबित होती थी। लेकिन आज यही बावड़ी सिस्टम की लापरवाही और उपेक्षा के कारण खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।घर-घर नल कनेक्शन पहुंचने के बाद से लोगों की नजरों से ओझल हुई यह बावड़ी अब मलबे से भरी पड़ी है और प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। 80 के दशक से पहले गर्मियों के सीजन में अपर लंबागांव बाजार और साथ लगते घंरु गांव के सैकड़ों घरों के लोगों के लिए चंबे दी बावड़ी ही ठंडे पानी का सहारा थी। बीते साल बरसात में बावड़ी के पास के नाले का पानी इसमें घुस आया। पानी के साथ आया भारी मलबा भी बावड़ी के अंदर और बाहर जमा हो गया। लेकिन न तो पंचायत और न ही संबंधित विभाग ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया। स्थानीय लोग नरेश कुमार, विनोद भारती और राजीव कुमार ने बावड़ी के संरक्षण का बीड़ा उठाया है, मगर प्रशासनिक सहयोग के अभाव में उनके प्रयास दम तोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि हम अकेले कितनी देर तक इस बावड़ी को बचा पाएंगे। बिना प्रशासनिक सहयोग के बिना यह कार्य सफल नहीं हो सकता। उन्होंने कि यह सिर्फ बावड़ी की कहानी नहीं, यह सिस्टम की सुस्त रफ्तार और संसाधनों के संरक्षण को लेकर गंभीरता की कमी का आईना है। अगर अभी भी संवेदनशील नहीं बने तो प्राकृतिक धरोहरें प्रशासनिक अनदेखी की भेंट चढ़ जाएंगी। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि बावड़ी का दौरा कर पंचायत को इसके संरक्षण के लिए कदम उठाने को कहा है। मगर सवाल यह है कि अब तक इंतजार क्यों किया गया।मैंने खुद बावड़ी का दौरा किया है। संबंधित पंचायत को बावड़ी को दुरुस्त करने के आदेश दे दिए हैं। बरसात से पहले बावड़ी को ठीक किया जाएगा। -सिकंदर, बीडीओ, लंबागांव लंबागांव में अनदेखी का शिकार प्राकृतिक जलस्रोत। संवाद

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 21, 2025, 18:17 IST
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