Brazil Violence: सिर्फ अमेरिकी नकल है ब्राजील में हुई हिंसा

पिछले दो साल से हम इस पर बहस कर रहे हैं कि छह जनवरी, 2020 को अमेरिका में कैपिटल हिल पर हमला चुनावी नतीजे की हताशा का परिणाम था या ट्रंप का अपने समर्थकों के जरिये खुद को दोबारा सत्ता में लाने का सुनियोजित प्रयास था। ट्रंप और उनके कोर ग्रुप ने एक सांविधानिक संकट पैदा करने की कोशिश की थी। पर उसका नतीजा हुड़दंगियों की सामूहिक गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजे जाने के रूप में सामने आया। उस घटना का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि सांविधानिक संकट पैदा करने वाले हुड़दंगिये हर जगह मौजूद हैं, जिनमें से कुछ तो खोखले और ख्वाबों में जीने वाले हैं, तो कुछ बेहद खतरनाक और अस्थिरता पैदा करने वाले हैं। कैपिटल हिल में हिंसा की विश्व स्तर पर पहली नकल हाल ही में हमने ब्राजील में देखी-पिछले सप्ताहांत वहां यह हिंसा ब्राजील के पराजित लेकिन लोकप्रिय राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो के समर्थकों ने ब्राजील की राजधानी में स्थित सरकारी भवनों में की। और अभी तक तो इस हिंसा को बेमतलब की श्रेणी में ही रखा जा सकता है। दंगाई चाहते थे कि बोलसोनारो को फिर से सत्ता मिले, जैसे कि अमेरिका में दंगाई डोनाल्ड ट्रंप को दोबारा व्हाइट हाउस में बिठाना चाहते थे। बोलसोनारो के समर्थकों का मानना था कि राष्ट्रपति चुनाव में धांधली हुई है, जैसा कि ट्रंप समर्थक दंगाइयों का भी मानना था। दंगाइयों ने हमले का जो समय चुना, वही उनकी विफलता बताने के लिए काफी था। सरकारी कामकाज रोकने या सत्ता के हस्तांतरण को बाधित करने के बजाय हुड़दंगियों ने राजधानी ब्रासिलिया में सत्ता के तीन प्रमुख केंद्रों-कांग्रेस, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन पर तब हमला बोला, जब वे खाली थे। कांग्रेस का सत्र नहीं चल रहा था और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा बाढ़ से हुए नुकसान का आकलन करने के लिए राजधानी से बाहर थे। निवर्तमान राष्ट्रपति बोलसोनारो भी आसपास होने के बजाय फ्लोरिडा में थे। सत्ता का हस्तांतरण नहीं हो रहा था, जिसे रोके जाने की मंशा हो। न ही नेता (बोलसोनारो) को सत्ता में स्थापित करने की योजना थी। ऐसे में हुड़दगियों ने आठ जनवरी का दिन सिर्फ इसलिए चुना था कि दुनिया इसे छह जनवरी, 2020 में अमेरिका में हुई हिंसा से जोड़े। लेकिन जो लेखक ब्राजील की हिंसा पर चिंता जता रहे थे, वे भी इसे अमेरिका से जोड़ने में सक्षम नहीं हुए। एनी एपेलबॉम ने द अटलांटिक में लिखा, 'ब्राजील में हुई हिंसा का मतलब तभी था, जब वह वाशिंगटन में हुई हिंसा के उद्देश्य के बराबर दिखता। दंगाई लूला को सत्ता में आने नहीं देना चाहते थे, पर उनकी हिंसक गतिविधियों में उनके उद्देश्य का पता नहीं चला।' इसी अखबार में याशा माउंक ने हिंसा को विचित्र बताते हुए कहा कि दंगाइयों की करतूत देखकर लगा कि वे सिर्फ दो साल पहले अमेरिका में हुई हिंसा का अनुकरण कर रहे थे। चूंकि ट्रंप की तरह बोलसोनारो राष्ट्रपति थे, इसलिए ब्राजील में उनकी लोकप्रियता को उस तरह खारिज नहीं किया जा सकता, जिस तरह आठ जनवरी को वहां हुई हिंसा को खारिज किया जा रहा है। इसके बावजूद ब्राजील में हुई हिंसा ने समकालीन लोकप्रियतावादी राजनीति की दो प्रवृत्तियों के बारे में बताया है। पहली प्रवृत्ति यह है कि आज के राजनेता किस तरह सत्ता बदलने या क्रांति करने के लिए अपने समर्थकों की मदद लेते हैं। अमेरिका में हुई हिंसा में यह पूरी तरह सच था, जहां हर महत्वपूर्ण संस्था ट्रंपवाद के विरुद्ध थी, नतीजतन ट्रंप समर्थकों का गुस्सा सिर्फ मीडिया और अदालत ही नहीं, बल्कि खुफिया एजेंसी और सेना के खिलाफ भी दिखा था। इसके विपरीत ब्राजील में, जहां सैन्य शासन का इतिहास है और जहां लोकप्रियतावादी बोलसोनारो के पक्ष में सशस्त्र आंदोलन का लाभ होने की संभावना ज्यादा थी, आठ जनवरी की हिंसा बेमतलब ही साबित हुई। दूसरी प्रवृत्ति यह, कि अमेरिका की तरह ब्राजील में भी लोकप्रियतावादी राजनेता शुद्ध राजनीति और नीतियों पर बात करने के बजाय सड़कों पर टकराने को ज्यादा वरीयता देते हैं। दक्षिणपंथी कट्टरवादियों (तथा दूसरे कट्टरवादियों में भी) में यह प्रवृत्ति आम है। केबल न्यूज और इंटरनेट ने इस तरह की हिंसा की आशंका और बढ़ा दी है। ऐसी हिंसा जायज और न्यायोचित भले न हो, लेकिन टेलीविजन पर इसके प्रचार-प्रसार से ज्यादा से ज्यादा लोगों में इसका हिस्सा बनने की इच्छा होती है। वामपंथियों और उदारवादियों ने इस प्रवृत्ति से कमोबेश बचने की प्रवृत्ति दिखाई है। लोकतंत्र की हमारी संस्थाओं में खामियां हो सकती हैं, लेकिन लोकप्रियतावादी राजनेता जैसे उससे भी ज्यादा लापरवाही भरा काम करने के लिए तैयार दिखते हैं। उनके हिंसक प्रदर्शनों में राजनीति-विरोध के साथ अधिनायकवाद और नाकामी का भी मिश्रण होता है। ऐसे में, सार्थक राजनीति करने वालों के लिए संदेश है कि वे लोकप्रियतावाद के चंगुल में न फंसें और इसे सिद्धांत तक सीमित रखें, क्योंकि ट्रंप या बोलसोनारो के लोकप्रियतावाद की नियति हिंसक होने की है। सार्थक राजनीति करने वाले खुद को लोकप्रियतावाद से अलग भी रख सकते हैं, क्योंकि यह एक विफल प्रयोग है। छह जनवरी, 2020 की नकल में आठ जनवरी, 2022 की हिंसा को विफलता के सिवा और क्या कहेंगे!

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 15, 2023, 05:35 IST
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