Ward Elections: दो सांसदों के इलाकों में भाजपा रही खाली हाथ, पांच विधायक भी नहीं दिला सके पार्टी को जीत
एमसीडी के 12 वार्डों में हुए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा की राजनीतिक मजबूती को लेकर कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं। खासकर सांसदों और विधायकों के मजबूत किले माने जाने वाले इलाकों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा से कमजोर रहा। दो संसदीय क्षेत्रों में तो भाजपा पूरी तरह खाली हाथ रही, जबकि कुछ जगहों पर हल्की बढ़त भी उसे ढकने में नाकाम रही। पश्चिमी दिल्ली की सांसद कमलजीत सहरावत भी अपने वार्ड में भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब रहीं। इन जीतों ने भाजपा को एक हद तक राहत दी, लेकिन उपचुनाव का समग्र संदेश यही रहा कि कई सांसदों, विधायकों के क्षेत्रों में उसका जनाधार कमजोर हुआ है। दक्षिणी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में दो वार्डों में उपचुनाव हुआ था और चौंकाने वाली बात यह है कि भाजपा दोनों वार्डों में हार गई, जबकि इनमें से एक वार्ड में आम चुनाव के दौरान भाजपा ने जीत हासिल की थी। उत्तर-पश्चिम दिल्ली संसदीय क्षेत्र के एक वार्ड में हुए चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। दिलचस्प यह है कि आम चुनाव में यहां निर्दलीय उम्मीदवार जीता था, जो बाद में भाजपा में शामिल हुआ और इस साल पार्टी के टिकट पर विधायक बन गया। उसके भाजपा से जुड़ने के बाद यह सीट राजनीतिक तौर पर भाजपा के खाते में मानी जाने लगी थी, मगर उपचुनाव में मतदाताओं ने भाजपा को समर्थन नहीं दिया और पार्टी हार गई। नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की स्थिति भी भाजपा के लिए कुछ खास नहीं रही। यहां दो वार्डों में चुनाव हुआ था, जिनमें से भाजपा को केवल एक पर जीत मिली, जबकि दूसरे वार्ड में उसे हार का सामना करना पड़ा। इस तरह भाजपा अपने ही पुराने गढ़ को नहीं बचा सकी। आम चुनाव में दोनों वार्ड भाजपा के कब्जे में थे। इसके विपरीत चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने पिछली बार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। आम चुनाव में यहां चार वार्डों में से दो में भाजपा ने जीत दर्ज की थी, जबकि उपचुनाव में तीन वार्ड भाजपा के खाते में गए। यह भाजपा के लिए राहत भरी खबर रही। पूर्वी दिल्ली के एकमात्र वार्ड में भाजपा पहले की तरह इस बार भी अपनी सीट बचाने में सफल रही। वहीं पश्चिमी दिल्ली के दोनों वार्डों में भी भाजपा ने जीत हासिल की, जहां पहले भी उसका कब्जा था। दूसरी ओर, उपचुनाव में पांच विधायकों के क्षेत्रों में उनकी पार्टियों को हार मिली। इनमें भाजपा के तीन विधायक और आम आदमी पार्टी के दो विधायक शामिल हैं। यह वही वार्ड हैं जहां पहले ये विधायक पार्षद हुआ करते थे, लेकिन उपचुनाव में उनकी पार्टी को जनता का समर्थन नहीं मिल पाया। वहीं मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता सहित छह विधायकों ने अपने इलाकों में पार्टी की जीत सुनिश्चित की। टिकट बंटवारे की नाराजगीभितरघात ने बिगाड़ी तस्वीर ट्रिपल इंजन की सरकार के बावजूद भाजपा एमसीडी के 12 वार्डों के उपचुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई। पार्टी के अंदरूनी हालात की पड़ताल करने पर सबसे बड़ा कारण टिकट बंटवारे को बताया जा रहा है। कई वार्डों में टिकट चयन को लेकर कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि कुछ बड़े नेता भी असंतुष्ट थे, जिसका सीधा असर भाजपा के नतीजों पर पड़ा।सबसे ज्यादा चर्चा मुंडका, नारायणा और संगम विहार वार्डों की है। इन तीनों वार्डों में टिकट बंटवारे से शुरू हुई नाराजगी उपचुनाव तक खत्म नहीं हुई। संगठन के कई पदाधिकारी और पुराने कार्यकर्ता खुले तौर पर कहते रहे कि उपयुक्त उम्मीदवारों की अनदेखी की गई है। परिणामस्वरूप कई कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार में पूरे मन से हिस्सा नहीं लिया। नारायणा वार्ड में असंतोष सबसे अधिक खुलकर सामने आया। यहां भाजपा के टिकट दिए जाने के बाद दो स्थानीय नेताओं ने बगावत करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया था। हालांकि इनमें से एक का पर्चा खारिज हो गया और दूसरे को संगठन के दबाव में नामांकन वापस लेना पड़ा, लेकिन इस प्रक्रिया ने पार्टी की एकजुटता को गंभीर रूप से प्रभावित किया। चुनाव के दौरान यह असंतोष वोटिंग पैटर्न में भी दिखा और वार्ड भाजपा के हाथ से निकल गया। अन्य कई वार्डों में भी टिकट बंटवारे को लेकर नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष देखा गया। यही कारण रहा कि भाजपा जिन वार्डों में बहुत कम अंतर से जीती, वहां भी अंदरूनी एकजुटता पूरी तरह से नहीं दिखी।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 04, 2025, 03:20 IST
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