Bihar: 'भोजपुरी भाषा ही नहीं, एक जातीय संस्कृति की पहचान', संकल्प के साथ भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का समापन
बिहार की आत्मा, अस्मिता, सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भोजपुरी भाषा को अष्टम सूची में शामिल कराने के संकल्प के साथ अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन 28 वॉ अधिवेशन का रविवार को भव्य समापन हो गया। इस दौरान दर्जनों साहित्यकार, कई पुस्तकों के विमोचन का सम्मेलन साक्षी बना। समापन समारोह में केंद्रीय राज्य मंत्री सतीश चंद्र दूबे और स्थानीय भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी भी शामिल हुए। सभी ने एक स्वर से भोजपुरी भाषा को सम्मान और हक दिलाने को लेकर अपना- अपना समर्थन दिया। स्थानीय सम्मेलन का सांगठनिक गठन के साथ नवमनोनित अध्यक्ष महामाया प्रसाद विनोद के नेतृत्व में बिहार सरकार को ज्ञापन सौपा गया। ज्ञापन में भोजपुरी भाषा को अष्टम सूची में शामिल कराने की मजबूत मांग की गई। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बिहार में नव गठित सरकार के गठन में भोजपुरी भाषी क्षेत्रों ख़ासकर सारण, चंपारण और शाहाबाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए उस क्षेत्र की भाषा- साहित्य- संस्कृति और कला का विकास अतिआवश्यक है। बिहार के नौ जिले पूर्णतः भोजपुरी भाषी हैं, जिनकी अपनी जातीय सांस्कृतिक पहचान है। अपनी कर्मठता, बुद्धिमत्ता और अध्यवसाय से बिहार के भोजपुरी भाषी लोग अपने क्षेत्र, राज्य, देश और दुनिया के विकास में योगदान दे रहे हैं। यह कहा गया कि बिहार सहित देश विदेश की प्रमुख भाषा बनी भोजपुरी को सम्मान देने की जरूरत है। बिहार में भोजपुरी मातृभाषा है और इसे सभी से समान्य बोलचाल में स्वीकार करने पर जरूरत है। सम्मेलन के बाद जो मांग पत्र बिहार सरकार को सौपा गया उसमें कई अन्य प्रकार के मांग शामिल है। अष्टम सूची में शामिल करने की मांग भोजपुरी भाषा को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करने की मांग भारत सरकार में दशकों से लंबित है। पूर्व में राज्य सभा सांसद संजय झा, रामचंद्र प्रसाद सिंह, हरिवंश सिंह ने गृह मंत्री को पत्र देकर इसकी मांग की थी। पुनः स्मार पत्र देकर इस मांग को पूरा करने का अनुरोध किया गया है। पढ़ें:लड़की की शादी में चली गोली, 50 वर्षीय अधेड़ की मौत; पुलिस ने हथियार के साथ तीन को पकड़ा कार्यालय के लिए भूमि का हो आवंटन अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के केंद्रीय कार्यालय के लिए भूमि व भवन आवंटन की मांग अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन ने की है। कहा गया कि संस्था 54 वर्ष पुरानी है, जिसके कार्यालय के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। पिछली सरकारों ने कई बार आश्वासन दिया, लेकिन अभी तक भूमि का आवंटन नहीं हुआ है। भोजपुरी अकादमी का हो पुनगठन भोजपुरी अकादमी, पटना 50 वर्ष पुरानी संस्था है, जो अब निष्क्रिय स्थिति में है। पहले इस अकादमी से कई पुस्तकें एवं पत्रिका प्रकाशित हुई है। लेकिन अब इसका पुनर्गठन किया जाए और उसमें साहित्यकारों और विद्वानों को जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। राजभाषा के रूप में मिले मान्यता भोजपुरी के व्यापक जनाधार, पौराणिक- ऐतिहासिक महत्व और प्रशासनिक उपयोगिता को देखते हुए इसे बिहार में राज्य की द्वितीय राजभाषा घोषित किया जाए। बिहार सरकार घोषणा के अनुसार वर्ष- 2026 से प्राथमिक से लेकर +2 स्तर तक भोजपुरी भाषा साहित्य को वैकल्पिक, अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किया जाए। प्राध्यापकों की हो नियुक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में प्राध्यापकों की नियुक्ति की जाए। भोजपुरी क्षेत्र के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों सहित जहां पाठ्यक्रम में भोजपुरी भाषा को शामिल किया गया हैं, वहां सहायक आचार्यों की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए। शोध केंद्र की हो स्थापना महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में भोजपुरी अध्ययन केंद्र की स्थापना की जाए। भोजपुरी भाषा, साहित्य, संस्कृति और कला के शोध के लिए अध्ययन के लिए केंद्र स्थापित कराने का प्रयास किया जाए। साहित्य अकादमी से भोजपुरी को मिले मान्यता साहित्य अकादमी से भोजपुरी भाषा साहित्य को पूर्णरूपेण मान्यता दिलाने का मांग किया गया। कहा गया कि भोजपुरी भाषा का लोक साहित्य समृद्ध है, संत साहित्य, राष्ट्रीय साहित्य और आधुनिक साहित्य भी समृद्ध है। इसके और विकास और प्रकाश के लिए साहित्य अकादमी से मान्यता आवश्यक है। उक्त अधिवेशन में यह भी कहा गया कि भोजपुरी सिर्फ एक भाषा नहीं है, एक जातीय संस्कृति की पहचान है। भोजपुरी लोकसाहित्य और शिष्ट साहित्य में अकूत ज्ञान संपदाएं भरी हुई हैं। इसकी मान्यता और विकास से समाज, राज्य और देश को लाभ होगा। मांग पत्र पर सम्मेलन के अध्यक्ष सह एमएलसी संजय मयूख, अध्यक्ष डॉ. ब्रज भूषण मिश्र, वर्तमान अध्यक्ष महामाया प्रसाद विनोद, महामंत्री जयकांत सिंह जय, आयोजन समिति के सचिव शिवानुग्रह नारायण सिंह, स्वागत सचिव मनोज सिंह और राकेश सिंह सहित दर्जनों साहित्यकारों ने अपना समर्थन दिया है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 01, 2025, 09:27 IST
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