बालमोहन पांडेय: ज़ाया हुआ तमाम हुनर नींद आ गई
ज़ाया हुआ तमाम हुनर नींद आ गई शब को सजा रहा था मगर नींद आ गई मैं चाहता तो ये हूँ कहानी तवील हो फिर ये भी सोचता हूँ अगर नींद आ गई करवट बदल ली दोनों ने इक ख़ामुशी के बाद मैं रो पड़ा और उस को उधर नींद आ गई दफ़्तर में तय किया था कि तारे गिनेंगे आज लेकिन हमें पहुँचते ही घर नींद आ गई कुछ दोस्तों ने आने से इंकार कर दिया कुछ दोस्तों को बीच सफ़र नींद आ गई इक रात उम्र भर की थकन का सबब ऐ दोस्त हम सोच ही रहे थे मगर नींद आ गई हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 27, 2025, 12:22 IST
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