Delhi Blast: क्या दिल्ली ब्लास्ट के दो 'केंद्र', हमले की जिम्मेदारी लेने से क्यों बच रहे आतंक के 'मुखौटे'?

दिल्ली में सोमवार को लालकिले के करीब हुए ब्लास्ट की जांच, एनआईए को सौंप दी गई है। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने आतंकी हमले की आशंका के मद्देनजर यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट) की धारा 16 और 18, एक्सप्लोसिव्स एक्ट तथा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत केस दर्ज किया था। सुरक्षा एजेंसी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं, प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि यह एक 'फिदायीन' अटैक यानी 'आत्मघाती' हमला है। जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व डीजीपी एसपी वैद्य ने अमर उजाला डॉट कॉम को बताया कि इस ब्लास्ट के दो 'एपीसेंटर' हैं। एक पाकिस्तान में है और दूसरा, जम्मू-कश्मीर में है। आईएसआई ने पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों के मुखौटे समूह, जो वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है, उनकी मदद से 'व्हाइट कॉलर' टेरर विंग खड़ी की है। इसी के जरिए आतंकी संगठनों ने विभिन्न हिस्सों में 'सीरीज ऑफ अटैक' की प्लानिंग की थी, जिसे खुफिया एजेंसियों ने काफी हद तक रोक दिया है। पूर्व डीजीपी एसपी वैद्य के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में धीरे-धीरे आतंकवाद पर सुरक्षा बलों का शिकंजा कसता जा रहा है। पत्थरबाज तो पहले ही खत्म हो चुके हैं, अब आतंकियों को नई भर्ती के लिए युवक नहीं मिल रहे। पुलिस और सुरक्षा बलों ने आतंकियों के मददगारों को भी काफी हद ढूंढ निकाला है। हालांकि अभी इस दिशा में बहुत सा काम बाकी है। ओवर ग्राउंड वर्कर, एक चुनौती बने हैं। दिल्ली के ब्लास्ट की जड़े, जम्मू-कश्मीर में ही हैं। फर्क केवल इतना है कि पहले पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के लोकल मुखौटे, टेरर अटैक की जिम्मेदारी ले लेते थे, इस बार वे चुप हैं। वजह, कुछ अंतरराष्ट्रीय दबाव है तो ज्यादा असर 'ऑपरेशन सिंदूर' का है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत सरकार से पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दे दी थी कि भविष्य में अगर कोई भी आतंकी हमला होता है तो उसे 'एक्ट ऑफ वॉर' माना जाएगा। यही वजह है कि दिल्ली ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान में लगातार बैठकों के दौर चल रहे हैं। जम्मू कश्मीर में सक्रिय किसी भी आतंकी समूह से दिल्ली ब्लास्ट की जिम्मेदारी नहीं ली है। हालांकि मुख्य तौर से आतंकी हमलों के मास्टर माइंड, पाकिस्तान के आतंकी संगठन 'जैश-ए-मोहम्मद' (जेईएम) या 'लश्कर-ए-तैयबा' (एलईटी) ही रहते हैं। पिछले कुछ वर्षों ने इन संगठनों ने प्रत्यक्ष तौर से अपनी उपस्थिति को छिपाने के लिए मुखौटे संगठन खड़े कर लिए हैं। जम्मू-कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद की प्रॉक्सी विंग, 'पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट' (पीएएफएफ) है, जबकि 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (टीआरएफ), को 'लश्कर-ए-तैयबा' की 'प्रॉक्सी विंग' माना जाता है। ये दोनों 'प्रॉक्सी विंग', केंद्रीय गृह मंत्रालय की आतंकी संगठनों की सूची में शामिल हैं। दिल्ली ब्लास्ट के तार जेएंडके से ही जुड़े हैं। बतौर एसपी वैद्य, आने वाले समय में ये कड़ियां जुड़ती हुई दिखाई देंगी। जिस कार में विस्फोट हुआ है, अगर उसे डॉक्टर उमर चला रहा था तो उसे कहां से आदेश मिले थे। पुलवामा में कई गिरफ्तारी की गई हैं। गुजरात, फरीदाबाद या सहारनपुर से जो आतंकी पकड़े गए हैं, भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद हुई है, उसका लिंक भी जेएंडके से है। डीएनए जांच में कई सवालों का जवाब मिल जाएगा। डॉक्टर अदील और मुजम्मिल, से पूछताछ के बाद कई हैरान करने वाले खुलासे होंगे। पुलवामा के रहने वाले दो भाई आमिर और उमर को भी हिरासत में लिया गया है। डॉ सज्जाद अहमद मल्ला, डॉ. आदिल अहमद राठेर, महिला डॉक्टर शाहीन शाहिद को भी गिरफ्तार किया गया है। जिस कार में विस्फोट हुआ है, उसमें डॉक्टर उमर ही था, इसका पता लगाने के लिए डीएनए टेस्ट की प्रक्रिया शुरु हुई है। वह कार तारिक (पुलवामा निवासी) के नाम पर बताई जाती है। 'व्हाइट कॉलर' टेरर नेटवर्क को आगे बढ़ा रहे इन लोगों के पास से असॉल्ट राइफल, विदेशी पिस्टल और 29 सौ किलो विस्फोटक सामग्री बरामद होना, क्या ये किसी लोकल मॉड्यूल की साजिश है। पूर्व आईपीएस वैद्य बताते हैं कि पाकिस्तानी की 'आईएसआई' मुख्य साजिशकर्ता है। दूसरे नंबर पर जेएंडके में मौजूद मुखौटे संगठन हैं। यहीं से देश के दूसरे हिस्सों में आतंकी वारदातों की साजिश रची जाती है। इन दोनों समूहों के लिए काम कर रहे ओवर ग्राउंड वर्करों को पकड़ने के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस और एनआईए सक्रिय है। अब नई चुनौती ये है कि इन मुखौटे संगठनों ने अपना विस्तार जम्मू कश्मीर से बाहर कर लिया है। एनआईए ने आतंकी फंडिंग और ओवर ग्राउंड वर्करों की जड़ों तक पहुंचने के लिए कई बार घाटी में रेड की है। गिरफ्तारियां भी हुई हैं। तकनीकी उपकरण भी बरामद किए गए हैं। जम्मू कश्मीर में उक्त आतंकी संगठनों के अलावा कई दूसरी तंजीमें भी सक्रिय हैं। तहरीक-उल-मुजाहिदीन (टीयूएम) की जेएंडके में उपस्थिति बताई जाती है। टीयूएम का गठन जून 1990 में जम्मू और कश्मीर जमात-ए-अहले-हदीस के प्रमुख मोहम्मद अब्दुल्ला ताइरी के करीबी सहयोगी यूनुस खान द्वारा किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 'आतंकवादी संगठन' के रूप में नामित संगठनों की सूची में उक्त समूह को भी शामिल किया है। ये भी पढ़ें:Delhi Blast:कानपुर में 10 साल पुराना रहस्य…GSVM पहुंची एजेंसियां, 2013 से लापता डॉ. शाहीन की फिर खुली फाइल जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान/पीपुल्स एंटी-फासीस्ट-फ्रंट (पीएएफएफ) और इसकी सभी विंग भी प्रतिबंधित हैं। हरकत-उल-मुजाहिदीन/हरकत-उल-अंसार/हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी या अंसार उलउम्मा की भी जेएंडके में कम स्तर की उपस्थिति बताई जाती है। हिज्ब-उल-मुजाहिदीन/हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन पीर पंजाल रेजिमेंट पर बैन लगा है। अल-उमर-मुजाहिदीन और जम्मू और कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, ये समूह भी प्रतिबंधित संगठनों की सूची में शामिल हैं। जमीयत-उल-मुजाहिदीन की भी जेएंडके में कम उपस्थिति बताई गई है। जमीयत-उल-मुजाहिदीन और अल बदर, ये दोनों संगठन भी जम्मू कश्मीर में सक्रिय रहे हैं। अल-कायदा/भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा (एक्यूआईएस) और इसके सभी समूहों को भी बैन किया गया है। मौजूदा समय में जेएंडके में एक्यूआईएस की ज्यादा बड़ी उपस्थिति नहीं है। इंडियन मुजाहिद्दीन, इसके सभी संगठन और मुखौटा संगठन, इनकी जेएंडके में उपस्थिति रही है। इन्हें भी बैन किया गया है। इस्लामिक स्टेट/इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट/इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया/दाइश को भी बैन किया गया है। फिलहाल, जेएंडके में इनकी सक्रिय भूमिका नहीं दिखाई पड़ रही। जम्मू और कश्मीर गजनवी फोर्स (जेकेजीएफ) और इसके सभी समूहों को बैन किया गया है। हिज्ब-उत-तहरीर (एचयूटी), एजीयूएच व एलईएम की इकाईयां भी जेएंडके में सक्रिय रही हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 11, 2025, 15:37 IST
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