Alert: सतपुला झील में फिर घुल रहा है जहर, एसटीपी चलने के बाद भी खुला नाला बढ़ा रहा खतरा; NGT की सख्ती बेअसर
दक्षिण दिल्ली की ऐतिहासिक सतपुला झील एक बार फिर प्रदूषण की मार झेल रही है। झील के पास संचालित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पूरी क्षमता से काम कर रहा है, इसके बावजूद झील का पानी गंदगी से भर रहा है। यह खुलासा दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (डीपीसीसी) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी रिपोर्ट में किया है। 14 नवंबर, 2025 को हुए निरीक्षण में डीपीसीसी के इंजीनियरों ने पाया कि आसपास के इलाकों से आने वाला एक खुला नाला बिना रुके झील में गंदा पानी पहुंचा रहा है, जबकि एसटीपी उसी गंदे पानी को पंप कर शुद्ध रूप में वापस झील में छोड़ने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में हरी-भरी झील को बचाने की इस कवायद के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने पार्क के हरे क्षेत्र में एसटीपी लगाने की अनुमति आखिर कैसे हासिल की। इस पर अब एनजीटी ने जवाब मांगा है। रिपोर्ट में डीपीसीसी के वरिष्ठ पर्यावरण इंजीनियर अनवर अली खान ने शपथ-पत्र देकर बताया कि 14 नवंबर 2025 को वाटर लैब के साथ साइट का निरीक्षण किया गया। एसटीपी के ऑपरेटर के अनुसार, डीडीए नाले से गंदे पानी को पंप कर एसटीपी में लाता है, जहां इसे शुद्ध किया जाता है। फिर शुद्ध पानी को छोड़ा जाता है, ताकि झील फिर से हरी-भरी हो सके। वहीं, एसटीपी की प्रक्रिया में स्क्रीन चैंबर, कलेक्शन टैंक, केमिकल डोजिंग टैंक और फिल्टर बेड शामिल हैं। विशेषज्ञ बोले, नहीं चेते हो जाएगी देर पर्यावरण विशेषज्ञ संजय मिश्रा ने बताया कि झील को पूरी तरह साफ करने के लिए नाले को बंद करना और लगातार मॉनिटरिंग जरूरी है। एसटीपी अच्छा कदम है, लेकिन झील का पानी अभी भी असुरक्षित है। डीडीए को तेजी से काम करना चाहिए, वरना झील का पारिस्थितिकी तंत्र बर्बाद हो जाएगा। उन्होंने बताया कि इस मामले ने दिल्ली के जल संकट को फिर उजागर किया है। शहर में कई झीलें प्रदूषण की शिकार हैं और सतपुला जैसी जगहें हरे फेफड़े का काम करती हैं। यही नहीं, स्थानीय लोगों का दावा है कि झील के आसपास बदबू और मच्छरों की समस्या बढ़ गई है। लैब रिपोर्ट में पानी की गुणवत्ता बेहद खराब 14 नवंबर को लिए गए सैंपल की लैब रिपोर्ट के अनुसार, झील का पानी वन्यजीव और मछलियों के लिए निर्धारित मानकों (क्लास-बी) से मेल नहीं खाता। हाइड्रोजन की क्षमता (पीएच) 7.8 दर्ज हुई, जो ठीक है, लेकिन जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) (20 एमजी/लीटर) और रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी) 72 एमजी/लीटर ज्यादा हैं। घुलित ऑक्सीजन (डीओ) मात्र 1.7 एमजी/लीटर है। कई एजेंसियों को मिले थे नोटिस अप्रैल 2024 में मीडिया रिपोर्ट के आधार पर शुरू हुए इस मामले में एनजीटी ने डीडीए, डीपीसीसी और दक्षिण जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किया था। यह मामला मई 2024 में एनजीटी के समक्ष आया, जब रिपोर्ट आई कि साकेत कोर्ट के पास खिड़की इलाके से एक बड़े नाले का कच्चा सीवेज झील में पंप किया जा रहा है। झील, जो दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पार्क में स्थित है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 04, 2025, 03:47 IST
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