अहमद अज़ीम: हुस्न-परी हो साथ और बे-मौसम की बारिश हो जाए

हुस्न-परी हो साथ और बे-मौसम की बारिश हो जाए छतरी कौन ख़रीदेगा फिर जितनी बारिश हो जाए ऐसी प्यास की शिद्दत है कि मैं ये दुआएँ करता हूँ जितने समुंदर हैं दुनिया में सब की बारिश हो जाए मेरी ग़ज़लें उस के साथ बिताए वक़्त का हासिल हैं वैसी फ़स्लें उग आती हैं जैसी बारिश हो जाए छोटे छोटे तालाबों से पानी छीना जाता है तुम तो बस ये कह देते हो थोड़ी बारिश हो जाए आँधी आए बिजली कड़के काली घटाएँ छाने लगें मजबूरन वो रुके मिरे घर इतनी बारिश हो जाए तंग आया हूँ मैं इस हिज्र-ओ-वस्ल की बूँदा-बाँदी से या तो सूखा पड़ जाए या ढंग की बारिश हो जाए हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 04, 2025, 13:13 IST
पूरी ख़बर पढ़ें »




अहमद अज़ीम: हुस्न-परी हो साथ और बे-मौसम की बारिश हो जाए #Kavya #UrduAdab #AhmadAzeem #अहमदअज़ीम #SubahSamachar