अब्दुल हमीद: हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं

कभी देखो तो मौजों का तड़पना कैसा लगता है ये दरिया इतना पानी पी के प्यासा कैसा लगता है हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है ज़वाल-ए-जिस्म को देखो तो कुछ एहसास हो इस का बिखरता ज़र्रा ज़र्रा कोई सहरा कैसा लगता है फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं हवा कहती है मुझ से ये तमाशा कैसा लगता है हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 02, 2025, 13:29 IST
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