आज का शब्द: वल्कल और गोपालदास 'नीरज' की कविता- प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है

'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- वल्कल, जिसका अर्थ है- वृक्ष की छाल। प्रस्तुत है गोपलादास 'नीरज' की कविता- प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है सेज पर साधें बिछा लो, आँख में सपने सजा लो प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है। यह हवा यह रात, यह एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ, यूँ बरसती हैं कि पंडित- मौलवी पथ भूल जाएँ, बिजलियों से माँग भर लो बादलों से संधि कर लो उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है। प्यार का मौसम दूध-सी साड़ी पहन तुम सामने ऐसे खड़ी हो, जिल्द में साकेत की कामायनी जैसे मढ़ी हो, लाज का वल्कल उतारो प्यार का कँगन उजारो, 'कनुप्रिया' पढ़ता न वह 'गीतांजलि' गाता नहीं है। प्यार का मौसम

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 06, 2023, 16:57 IST
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