आज का शब्द: दुर्निवार और दुष्यन्त कुमार की कविता- वह चक्रव्यूह भी बिखर गया

'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- दुर्निवार, जिसका अर्थ है- जो जल्दी रोका या हटाया न जा सके, जिसका होना प्राय: निश्चित हो। प्रस्तुत है दुष्यन्त कुमार की कविता- वह चक्रव्यूह भी बिखर गया वह चक्रव्यूह भी बिखर गया जिसमें घिरकर अभिमन्यु समझता था ख़ुद को। आक्रामक सारे चले गये आक्रमण कहीं से नहीं हुआ बस मैं ही दुर्निवार तम की चादर-जैसा अपने निष्क्रिय जीवन के ऊपर फैला हूँ। बस मैं ही एकाकी इस युद्ध-स्थल के बीच खड़ा हूँ। यह अभिमन्यु न बन पाने का क्लेश ! यह उससे भी कहीं अधिक क्षत-विक्षत सब परिवेश !! उस युद्ध-स्थल से भी ज़्यादा भयप्रदरौरव मेरा हृदय-प्रदेश !!! इतिहासों में नहीं लिखा जायेगा। ओ इस तम में छिपी हुई कौरव सेनाओं ! आओ ! हर धोखे से मुझे लील लो, मेरे जीवन को दृष्टान्त बनाओ; नये महाभारत का व्यूह वरूँ मैं। कुण्ठित शस्त्र भले हों हाथों में लेकिन लड़ता हुआ मरूँ मैं। हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 30, 2025, 16:52 IST
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