आज का शब्द:  भवितव्य और महादेवी वर्मा की कविता- विस्मृति तिमिर में दीप हो

'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- भवितव्य, जिसका अर्थ है- जो भविष्य में अवश्य होनेवाला हो, भावी। प्रस्तुत है महादेवी वर्मा की कविता- विस्मृति तिमिर में दीप हो विस्मृति तिमिर में दीप हो भवितव्य का उपहार हो; बीते हुए का स्वप्न हो मानव हृदय का सार हो। तुम सान्त्वना हो दैव की तुम भाग्य का वरदान हो; टूटी हुई झंकार हो गत काल की मुस्कान हो। उस लोक का संदेश हो इस लोक का इतिहास हो; भूले हुए का चित्र हो सोई व्यथा का हास हो। अस्थिर चपल संसार में तुम हो प्रर्दशक संगिनी, निस्सार मानस कोप में हो मंजु हीरक की कनी। दुर्दैव ने उर पर हमारे चित्र जो अंकित किये, देकर सजीला रंग तुमने सर्वदा रंजित किये; तुम हो सुधा धारा सदा सूखे हुए अनुराग को; तुम जन्म देती हो सजनि! आसक्ति को वैराग्य को। तेरे बिना संसार में मानव हॄदय श्मशान है; तेरे बिना हे संगिनी! अनुराग का क्या मान है

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jun 12, 2025, 17:27 IST
पूरी ख़बर पढ़ें »




आज का शब्द:  भवितव्य और महादेवी वर्मा की कविता- विस्मृति तिमिर में दीप हो #Kavya #AajKaShabd #आजकाशब्द #Hindihanihum #हिंदीहैंहम #HindiHainHum #हिंदीहैंहम #HindiApnoKiBhashaSapnoKiBhasha #हिंदीअपनोंकीभाषासपनोंकीभाषा #SubahSamachar