आज का शब्द: अंकन और महादेवी वर्मा की कविता- क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन !
'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- अंकन, जिसका अर्थ है- अंक या चिन्ह बनाना, वर्णन या चित्रण करना, कलम या कूँची से चित्र बनाना। प्रस्तुत है महादेवी वर्मा की कविता- क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन ! क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन ! बन गया तम-सिन्धु का, आलोक सतरंगी पुलिन सा; रजभरे जगबाल से है, अंक विद्युत् का मलिन सा; स्मृति पटल पर कर रहा अब वह स्वयं निज रूप-अंकन! चाँदनी मेरी अमा का भेंटकर अभिषेक करती; मृत्यु-जीवन के पुलिन दो आज जागृति एक करती; हो गया अब दूत प्रिय का प्राण का सन्देश-स्पन्दन! सजलि मैंने स्वर्णपिंजर में प्रलय का वात पाला; आज पुंजीभूत तम को कर, बना डाला उजाला; तूल से उर में समा कर हो रही नित ज्वाल चन्दन! आज विस्मृति-पन्थ में निधि से मिले पदचिह्न उनके; वेदना लौटा रही है विफल खोये स्वप्न गिनके; धुल हुई इन लोचनों में चिर प्रतीक्षा पूत अंजन! आज मेरा खोज-खग गाता लेने बसेरा, कह रहा सुख अश्रु से तू है चिरंजन प्यार मेरा; बन गए बीते युगों को विकल मेरे श्वास स्पन्दन! बीन-बन्दी तार की झंकार है आकाशचारी; धूलि के इस मलिन दीपक से बँधा है तिमिरहारी; बाँधती निर्बन्ध को मैं बन्दिनी निज बेड़ियाँ गिन! नित सुनहली साँझ के पद से लिपट आता अँधेरा; पुलक-पंखी विरह पर उड़ आ रहा है मिलन मेरा; कौन जाने है बसा उस पार तम या रागमय दिन!
- Source: www.amarujala.com
- Published: Jun 02, 2025, 18:06 IST
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