विपक्षी एकता पर विधेयक का भविष्य: 130वां संविधान संशोधन NDA सरकार का हताश दांव, अडिग रहने का समय; सच्चाई क्या?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है। अनुच्छेद 368(2) कहता है, संविधान में संशोधन प्रक्रिया केवल विधेयक के प्रस्तुतिकरण द्वारा शुरू की जा सकती है। विधेयक को प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के बहुमत से तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए। इसके बाद उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। उनकी सहमति मिलने पर संविधान संशोधित हो जाता है। संख्या बल की हकीकत अभी सदन में एनडीए के पास दो-तिहाई बहुमत कहीं भी नहीं है। लोकसभा में उसके पास 293 सदस्य (543 में से) और राज्यसभा में 133 सदस्य (245 में से) हैं। यदि सभी सांसद मौजूद रहकर मतदान करें, तब भी एनडीए दोनों सदनों में आवश्यक आंकड़े से काफी दूर है। विपक्षी दलों के पास लोकसभा में 250 और राज्यसभा में 112 सदस्य हैं। यदि लोकसभा में 182 और राज्यसभा में 82 सांसद विधेयक के खिलाफ वोट करें तो यह पारित नहीं होगा। लेकिन यह मुश्किल है, क्योंकि विपक्ष पूरी तरह एकजुट नहीं है। वाईएसआरसीपी, बीजेडी, बीआरएस, बीएसपी और कुछ छोटे दल अक्सर सरकार का समर्थन करते हैं। वहीं एआईटीसी और आम आदमी पार्टी भले ही एनडीए का विरोध करती हों, लेकिन इंडी गठबंधन के साथ उनका तालमेल मुद्दों पर निर्भर करता है। एक हताश दांव ऐसी परिस्थिति में एनडीए सरकार ने 'संविधान विधेयक, 2025' (एक सौ तीसवां संशोधन) पेश किया और इसके पेश होते ही सरकार ने उसे तुरंत संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया। ऊपरी तौर पर यह एक साधारण विधेयक प्रतीत होता है, लेकिन इसके पीछे उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है। ऐसे मंत्री (प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित) को पद से हटाना, जो गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार होकर 30 दिनों तक जेल में रहते हैं। इन 30 दिनों में सामान्यतः, जांच पूरी नहीं होती, आरोप पत्र दाखिल नहीं होता, मुकदमा नहीं चलता और दोषसिद्धि नहीं होती। बावजूद इसके 31वें दिन उस मंत्री को अपराधी के रूप में पदच्युत कर दिया जाएगा।भाजपा इस विधेयक को सांविधानिक शुचिता और राजनीतिक नैतिकता का प्रतीक बताकर प्रचार कर रही है। उसका तर्क है- क्या भ्रष्ट मंत्री को हटाने का काम बड़ा नहीं है क्या कोई मंत्री जेल से शासन चला सकता है जो इसका समर्थन करेंगे, वे सच्चे देशभक्त और राष्ट्रवादी हैं और जो लोग विरोध करते हैं, वे राष्ट्रविरोधी हैं। सच्चाई क्या है एनडीए सरकार के तहत आपराधिक कानून कैसे काम कर रहे हैं, इसको जानना सचमुच भयावह है। वर्तमान स्थिति यह है कि आज लगभग हर कानून राजनीतिक हथियार बन चुका है, यहां तक कि जीएसटी भी। कोई भी पुलिस अधिकारी (जिसमें एक कांस्टेबल भी शामिल है) किसी ऐसे व्यक्ति को, चाहे वारंट हो या न हो, गिरफ्तार कर सकता है, जिसके खिलाफ यह ठोस शक हो कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है। जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर की मशहूर टिप्पणी “जमानत नियम है, जेल अपवाद” के बावजूद निचली अदालत जमानत देने से हिचकती हैं। उच्च न्यायालयों में भी शुरुआती सुनवाई में जमानत टल जाती है, अक्सर 60-90 दिन बाद ही राहत मिलती है। सुप्रीम कोर्ट में रोजाना दर्जनों जमानत याचिकाएं दाखिल होती हैं। प्रधानमंत्री को इसमें शामिल करना हास्यास्पद है, क्योंकि कोई पुलिस अधिकारी उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं करेगा। अडिग रहने का वक्त इंडी गठबंधन और तृणमूल कांग्रेस के पास इतना संख्याबल है कि वे विधेयक को गिरा सकते हैं। फिर भी सरकार को भरोसा है कि वह विपक्षी दलों को तोड़कर या अनुपस्थिति सुनिश्चित कर इसे पारित करा सकती है। मीडिया इसे 'राष्ट्रहित' की लड़ाई की तरह प्रचारित कर रहा है और प्रवर समिति इस मुद्दे को बिहार (2025) तथा असम, केरल, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल (2026) के चुनावों तक जीवित रख सकती है। तथ्य-जांच इंडियन एक्सप्रेस (22 अगस्त, 2025) की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से अब तक विपक्षी दलों के 12 मंत्री बिना जमानत के कई महीनों तक हिरासत में रहे हैं। दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से गंभीर आपराधिक आरोपों वाले 25 नेता भाजपा में शामिल हुए और उनमें से 23 को आरोपों से बरी कर दिया गया। 2014 के बाद से भाजपा का कोई मंत्री गिरफ्तार नहीं हुआ। यदि यह विधेयक पारित हो गया तो भारत उन देशों की श्रेणी में आ जाएगा, जहां विपक्षी नेताओं को नियमित रूप से जेल में डाला जाता है- जैसे कि बेलारूस, कंबोडिया, म्यांमार, रूस, युगांडा आदि। यदि विपक्षी दल अपने विचारों पर अडिग रहे तो यह विधेयक पास नहीं हो पाएगा। इसके बाद जब भी इसे दोबारा पेश किया जाएगा, यह तुरंत ध्वस्त हो जाएगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 31, 2025, 07:33 IST
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